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Channel: Riwa Singh – Firkee
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लड़कियों! बॉयफ्रेंड बनाओ पर ऐसे लड़कों को नहीं

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हम 14वीं सदी में नहीं रह रहे जो गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड के रिश्ते पर नाक-मुंह सिकोड़ना शुरू कर दें। आज हमारे समाज में यह आम रिश्ता है। लव-रिलेशनशिप कॉमन हो गया है। कई बार यह इतना ट्रेंडी और फैशनेबल लगने लगता है कि हमें किसी की ज़रूरत नहीं महसूस होती, हम किसी से कुछ खास लगाव नहीं रखते फिर भी दूसरों को बताने के लिए कि हम भी कमिटेड हैं, रिलेशनशिप में हैं.. बॉयफ्रेंड बना लेते हैं।

ऐसा बॉयफ्रेंड जिसकी आपको खास ज़रूरत नहीं थी, जिसके साथ आपका रिश्ता लंबा नहीं चलने वाला। मैं यह नहीं कह रही कि रिश्ता लंबा चलने वाला हो तभी बॉयफ्रेंड बनाया जाए। पर सिर्फ़ कमिटेड बने रहने के लिए बॉयफ्रेंड बनाना भी सही नहीं है।

लड़के भी कई तरह के होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि लड़कियां कई तरह की होती हैं। लड़का आपको अच्छा लगता है ये तो ठीक है। पर सिर्फ़ अच्छा लगता है इसलिए बॉयफ्रेंड बना लेना समझदारी नहीं है। अच्छा तो वो भी लगता है जिसपर हमारा क्रश होता है। क्रश समझती हैं न आप। पर सबसे प्यार नहीं किया जा सकता। सबको बॉयफ्रेंड नहीं बनाया जा सकता।

Suggesting

एक लड़का है जो आप से बेहद प्यार करता है। और ये आपको इसलिए पता है क्योंकि वो हर दूसरी बात में आपको नसीहत देता है। कहीं न कहीं आपको लगता है कि वो ठीक ही कह रहा है। आप जैसी सीधी लड़कियों कि वजह से ही ऐसे लड़के हीरो बन जाते हैं। उन्हें लगता है कि लड़कियां तो होती ही डब्बा हैं, उन्हें हर चीज़ के लिए लड़कों से सलाह-मशवरा करना चाहिए। सही वही है जो वो डिसाइड करते हैं। साहबज़ादे मंगल ग्रह से इंटेलिजेंस में क्रैश कोर्स कर के आए हैं न.. Huh! ऐसे लड़कों को हीरो न बनने दें, इनसे बात करती भी हैं तो उस बात पर अपनी बात रखने की आदत डालें। उनकी हर बात पर हां में हां मिलाना ज़रूरी नहीं है। आप देखेंगी कि जब आप अपनी बात रखती हैं तो वह किस तरह आपको पुचकारते हुए उस बात को हटाकर अपनी बात मनवा लेता है। आप बस बुद्धू बनी रह जाती हैं।

Possesive

दूसरी वैराइटी उन लड़कों की है जो पज़ेसिव माने जाते हैं। आपको पज़ेसिव लड़के पसंद हैं। आपको अच्छा लगता है जब कोई आपकी परवाह करता है। वो आपकी परवाह करता है ये आप इसलिए जानती हैं क्योंकि वो डिसाइड करता है कि आप अपने दोस्तों के साथ घूमने जाएंगी या नहीं। आप स्कर्ट पहनेंगी या नहीं। गुस्सा कर के नहीं, बड़े प्यार से दबाव डालते हुए। आप किसी से बात करती हैं तो उसे बुरा लगता है और उसका बुरा लगना आपको बड़ा ही क्यूट लगता है। ये एक वक्त तक तो ठीक है, पर जब हर रोज़ ये चीज़ें देखने को मिलें। जब हर रोज़ आपको पूछना पड़े कि आज टीना के घर चली जाऊं? सभी कॉलेज ट्रिप पर जा रहे हैं, जाऊं या नहीं? कज़िन की शादी में क्या पहनूं? तो समझ लें कि कुछ गड़बड़ है। अगर आप ने उससे पूछे बगैर कुछ कर लिया और रात भर आपको यह सोचकर नींद नहीं आई कि कल वो गुस्सा करेगा, तो मैं तो कहती हूं बेटा – किनारा कर लो ऐसे रिलेशनशिप से।

गर्लफ्रेंड बहुत पैसे खर्च करवाती हैं। कुछ लड़कियां तो बॉयफ्रेंड बनाती ही इसलिए हैं ताकि शॉपिंग का खर्च निकल सके.. ऐसी तमाम बातों के लिए लड़कियां बदनाम हैं। यकीन मानिए कुछ लड़कियां पैसे बिल्कुल खर्च नहीं करवातीं। उन्हें ये अपने आत्मसम्मान की तौहीन लगती है। ऐसी लड़कियों को देखकर लड़के सरप्राइज़्ड भी होते हैं। इनमें से कुछ लड़कियों को बहुत कुछ झेलना पड़ता है। बॉयफ्रेंड के फोन का बिल, उसका रिचार्ज, कुछ पैसे उधार दे दो बाद में दे दूंगा जैसी बातें आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं। मतलब ये कि आपको लगता है कि लड़कियां ही खर्च करवाती हैं पर जहां लड़कियां खर्च नहीं करवातीं वहां कई बार उन्हें इस खर्चे से परेशान रहना पड़ता है।  साथ में रहना है तो खर्च उठाने में कोई बुराई नहीं है.. पर आप उसके खर्च से लदी जा रही हैं और आपके अपने काम अगले महीने की सैलरी का वेट कर रहे हैं तो सोच लीजिए।

Dominating

एक और महान नस्ल है बॉयफ्रेंड्स की। ये नस्ल पतियों में भी पाई जाती है। होता क्या है कि आप सोच चुकी होती हैं कि सीता मईया बनी रहना है। पूरी तरह डेडिकेट होते हुए आप रिलेशन में आगे बढ़ती हैं। धीरे-धीरे आपके बॉयफ्रेंड को आपका डेडिकेशन आपका फ़र्ज़ लगने लगता है। इस नस्ल के बॉयफ्रेंड्स ये भी सोचते हैं कि रिश्ते में वो सुपीरियर हैं। तो अब क्या होगा? होगा ये कि “तुम्हारा वो जो फ्रेंड है न अभय, मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। तुम्हारी बहन बात कैसे करती है? लगता है किसी गांव से सीधे मुंह उठाकर यहां चली आई हो। तुम्हारे कॉलेज के सारे स्टूडेंट्स की मेंटैलिटी ही ऐसी है।” ऐसी हज़ारों बातें आपको सुनने को मिलेंगी। आपको उसके फ्रेंड्स को स्पेस देना है। उसकी फैमिली की इज्ज़त करनी है, उसका सेल्फ़-रेस्पेक्ट हर्ट नहीं करना है। पर वो आपसे रिलेटेड किसी भी इंसान के बारे में कुछ भी बोल सकता है। ये कहते हुए कि भैया मुझे तो खरी-खरी कहने की आदत है।

आप रिलेशनशिप चाहती हैं, बॉयफ्रेंड बनाना चाहती हैं, बिल्कुल बनाएं। पर याद रखें कि आप अपनी लाइफ में खुशियां बढ़ाने के लिए ऐसा कर रही हैं। अगर आपका रिलेशन आपको फ्रस्ट्रेट करता है। आप इसी चिंता में डूबी रहती हैं कि फलां बात के लिए आपका बॉयफ्रेंड गुस्सा करेगा तो ये सब बेकार है। रिश्तों को बोझ की तरह न ढोएं। कई बार ऐसा भी होता है कि आप कमिटेड हैं, खुश नहीं हैं फिर भी रिश्ता नहीं तोड़ना चाहतीं क्योंकि आपको ये नहीं सुनना कि आप ने ब्रेकअप किया। अगर ऐसा हुआ तो सभी लोग आपके बॉयफ्रेंड को सिम्पैथी देने लगेंगे।

एक लड़की की सबसे बड़ी कमज़ोरी जानती हैं आप? आप डिसीज़न नहीं ले पाती हैं। आपकी डिसीज़न के बीच मॉरल साइंस की सारी किताबें और सारा ज्ञान आ जाता है। आप रेस्त्रां में खुद से ये डिसाइड भी नहीं कर पातीं कि आपको खाना क्या है? दोस्त की चॉइस के बाद आपको आइडिया आता है। अपने डिसीज़ंस लेना शुरू करो लड़कियों! बहुत कुछ बदल जाएगा।

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उन परिवारों के नाम जिनकी बेटी ने बिरादरी की नाक कटवा दी

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आदरणीय पिताजी,

परिवार में पिताजी को इसलिए लिखा क्योंकि ज्यादा इज़्ज़त पुरुष,पति और पिता की ही होती है इसलिए नाक भी उन्हीं की कटती है। औरतों का बस बरामदा, रसोई और आंगन होता है। अगर चौखट से बाहर कुछ हुआ भी तो वो चौखट के बाहर चौपाल लगाने वालों की कृपा से ही संभव हो पाता है।

पिताजी, आप ने अपनी बिटिया को बड़े नाज़ों से पाला-पोसा, उसकी पसंद के स्कूल और कॉलेज में पढ़ाया, वो अपनी पसंद के कपड़े पहनती-ओढ़ती थी। आपने कोई कसर नहीं छोड़ी फिर भी लड़की ने आपकी लाज नहीं रखी। बिरादरी में आपकी नाक कटवा दी। उसे किसी लड़के से प्यार हो गया और वो ज़िद्द पर अड़ी थी कि उसी से शादी करनी है। आज आपको सभी लोग कोसते हैं कि आपने उसे उतनी छूट दी ही क्यों? आपको भी लगता है कि इतना प्यार देने का क्या फायदा अगर उसने अपनी मर्ज़ी से किसी दूसरी बिरादरी का लड़का पसंद कर लिया।

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वो अपनी पेंसिल तक खुद से चुन सकती है पर उसे किसके साथ रहना है ये आप चुनेंगे। पेंसिल 4 दिन बाद नहीं रहेगी, पर उसे उस लड़के के साथ उम्र भर रहना है। वो मर भी गया तो उसी की विधवा बनी रहना है। फिर भी अगर उसने अपना साथी खुद पसंद कर लिया तो आपकी नाक कट गई। आप अपनी ये नाक बचाने के लिए उसे किसी ऐसे के बिस्तर पर पटकना चाहते हैं जहां वह जाना नहीं चाहती। आप पिता हैं, सिर्फ़ इसलिए उस लड़के के साथ हमबिस्तर होना आपकी बेटी का बलात्कार नहीं कहलाएगा। रिवाज़ के लिहाफ़ में ओढ़ी यह प्रथा ‘ज़बरदस्ती’ नहीं मानी जाएगी।

आप अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं पर अंतरजातीय विवाह के नाम पर आपका प्यार गंगा में बह जाता है और आप उसे सीधी धमकी देते हुए, काटकर शहर के किनारे बह रहे नाले में फेंकने की बात करते हैं। लड़की की मां जो आज तक किसी बात पर बोलने का अधिकार नहीं रखतीं कि क्या सही है और क्या गलत, वो भी इस वक्त आपकी वकालत करने लगती हैं। वो मां जिन्हें हर बात का यही जवाब पता है कि – पापा से पूछ लो.. लड़की के प्रेम का किस्सा सुनते ही कह देती हैं कि तुम्हारी जैसी बेटी से अच्छा मैं बांझ हुई होती।

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आप बेटियों को नहीं पालते, उनके बहाने समाज में अपना पालन-पोषण करते हैं। आपको बेटियों से लगाव है पर खुद से अधिक नहीं। आप तबतक बेटी से प्यार करते हैं जबतक वो प्यार आपके स्वप्रेम को चोट नहीं पहुंचाता। आप इस प्रेम में स्वार्थी हैं। उसे पढ़ाते-लिखाते हैं, सबकुछ करते हैं क्योंकि वो आपकी औलाद है। पर जब शादी की बात आती है तो आप चाहते हैं कि आखिरी फैसला आपका हो। दूसरी जाति में शादी आपको खटकती है, इसलिए नहीं कि लड़का खराब है.. इसलिए कि समाज क्या कहेगा। लोग क्या कहेंगे। ऐसे लोग जिन्हें 4 मोहल्ले से आगे जानने वाला कोई न हो, समाज के नाम की माला सबसे ज्यादा जपते हैं।

आप जैसे लोग ये दावे करते हैं कि ये प्यार-मुहब्बत भरा रिश्ता ज्यादा लंबा नहीं चलता। लंबा चलने की गारंटी के साथ कोई रिश्ता नहीं आता। आपका वो अरेंज्ड मैरेज भी नहीं। कल अगर मैं परेशान हूं। आपकी पसंद का लड़का मुझे शादी के बाद पसंद नहीं करता तो आपका समाज नसीहतों से अधिक कुछ नहीं देता है।

मैंने अंतरजातीय विवाह पर खाप के फैसले देखे और सुने हैं। मैंने वो घटनाएं देखी हैं जिनमें लड़कियों ने अपनी मर्ज़ी से दूसरी जाति के लड़के से शादी कर ली है। वो लड़की परिवार के लिए ‘मर’ जाती है। उससे परिवार का कोई लेना-देना नहीं रहता। शादी के 10 साल बाद भी अगर किसी ने घर में उसका नाम ले लिया तो बवाल होने लगता है।

मैंने ऐसे घर भी देखे हैं जहां लड़के घर के खिलाफ़ जाकर शादी करते हैं। नाराज़गी उनसे भी रहती है, कई सालों तक रहती है.. पर फिर वो अचानक ही खत्म हो जाती है। पोते का मुंह देखकर दादा-दादी सब भूल जाते हैं। नाती का मुंह देखकर यही जब नाना-नानी बनते हैं तो उस नाती में पराई जाति का खून ढूंढ निकालते हैं।

आप बेटी को आज भी स्वीकार नहीं पाए। बेटी पराया धन है ये समाज की रवायत होगी पर आपको भी अपने कुल के दीपक की ही फ़िक्र होती है। जीते जी आप अपनी लाश को कंधा देने वालों के लिए ही मरते फिरते हैं। बेटी ने अगर कह दिया कि उसे कोई लड़का पसंद है और वो दूसरी जाति का है तो ये आपकी साख़ का सवाल बन जाता है। यही बात बेटा कहता है तो आपकी इज़्ज़त का फालूदा नहीं होता। आप ज्यादा से ज्यादा यही करते हैं कि लड़के की पसंद का ख्याल नहीं रखते।

लड़की के केस में आप उसे कमरे में कैद रखने से भी नहीं कतराते। वो आपकी बेटी नहीं, आपकी संपत्ति हो जाती है। वो अचानक ही बद्चलन, बद्तमीज़ और बेहया हो जाती है। आपको उससे कोई प्रेम नहीं रहता। आप बस चाहते हैं कि जल्द से जल्द उसकी शादी कर दें और आपका पिंड छूट जाए। कभी सोने से पहले खुले आसमान को निहारते हुए सोचिएगा कि ये क्या है? ये जो भी है उसे स्वार्थ क्यों नहीं कहा जाना चाहिए? आपके साथ अपने जीवन से 2-3 दशक बिता चुकी लड़की को इसके बाद आपके बारे में क्या सोचना चाहिए? अपना पेट काटकर आप उसकी शादी के दहेज़ के लिए पैसे जोड़ते हैं पर शादी आपके हिसाब से होनी चाहिए। असल में ज़िंदगी का वो सबसे बड़ा फैसला आपका होता है, लड़की बस नाच रही होती है।

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ऐसे में अगर लड़की को यही लगने लगे कि आप अपनी साख के लिए उसका गला घोंट रहे हैं तो उसे क्या करना चाहिए? भागने में इज़्ज़त नहीं होती। चुपचाप शादी कर लेने में होती है। आप वही मां-बाप हैं जो लड़की की मौत से कहीं ज्यादा परेशान उसके बलात्कार पर हो जाते हैं; यहां भी आपकी वही पुरानी इज़्ज़त वाली थ्योरी चलती है। बलात्कार के बाद लड़की पर क्या बीतती है इस पर बाद में बात करेंगे बड़ी बात तो ये है कि अब लड़की से शादी कौन करेगा?

आपलोग अपनी बेटियों के बहाने अपनी प्रतिष्ठा से प्रेम करते हैं। अगर आप मज़बूत रहें तो आपका ‘समाज’ कुछ कहने नहीं आता। पर आप बेटियों को जागीर मानते हैं और खुद के साथ-साथ पूरे समाज को उस जागीर का रखवाला। आप अपना स्वार्थ, अपनी नाक देखते हैं। बेटियों की भावना, पीड़ा नहीं दिखती। आपने बेटियों को त्याग की देवी बनते हुए ही देखा है। वो आपकी इज़्ज़त-मान-सम्मान बनने के लिए ही जन्मीं हैं। यकीन मानें, हर बेटी के लिए बहुत मुश्किल होता है आपकी ये नाक कटवाना, पर आप अपनी नाक के बदले उसके जिस्म का सौदा कर आते हैं, वहां जहां उसका दिल नहीं है।

और इस सौदे को रिवाज़ का नाम देकर अपनी नाक बचा लेते हैं। कभी फुर्सत में बैठकर अपनी बेटी को या उसकी तस्वीर को निहारते हुए सोचिएगा.. वो बेटी ‘ज़िम्मेदारी’ से अधिक भी कुछ है।

‘शादी की उम्र’ की ओर बढ़ती हुई एक बेटी

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क्योंकि तलाक सिर्फ़ महिलाओं का होता है!

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“तलाक!” ऐसे शब्द कानों में पड़ते ही कितने चुभते हैं न। ‘शादी’ ज़िंदगी का बहुत बड़ा फैसला होता है। प्यार-मोहब्बत उससे छोटा। छोटा शायद इसलिए भी क्योंकि प्रेम को कई बार दफ़्न करना पड़ता है। आपके प्रेम को घर-परिवार-समाज में जगह मिले, ऐसा ज़रूरी नहीं। तलाक बहुत बड़ा फैसला होता है। शादी से भी बड़ा, शायद इतना बड़ा कि कई लोग चाहकर भी इस फैसले को अपना नहीं पाते। ऐसा फैसला जिसे अपनाया जाता है आज़ादी के लिए, जकड़न और बंदिशों से मुक्ति के लिए पर अक्सर ही यह फैसला अपने साथ एक तरह का बोझ लेकर आता है। तलाक के बाद आज़ाद होना आसान नहीं, लोग अक्सर बोझिल महसूस करते हैं।

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लोगों में महिलाओं के साथ ऐसा ज्यादा होता है क्योंकि तलाक सिर्फ़ महिलाओं का होता है। ठीक वैसे ही जैसे अपहरण या बलात्कार के बाद बहिष्कार भी सिर्फ़ महिलाओं का होता है। आरोपी को कुछ समय बाद ही सही, पर घर-परिवार-समाज का साथ और उनकी सहानुभूति, सब मिल जाता है। तलाक महिलाओं का होता है क्योंकि महिलाओं को तलाक जैसे कठिन फैसले लेने में थोड़ा वक्त लगता है। पुरुष अगर अपनी स्त्री के साथ न रहना चाहे तो उसका घर-परिवार भी उसे ज्यादा समय तक विवश नहीं कर सकता। उसे तलाक जैसे कानून की खास ज़रूरत नहीं। वो वैसे भी अपना रास्ता अगल कर लेगा। कुछ धर्मों में तो तीन बार तलाक कहकर ही मुक्ति पा लेगा। महिलाओं के लिए तलाक सबसे अधिक भारी-भरकम और बोझिल शब्द है। बोझिल इसलिए कि तमाम कानूनी दस्तावेजों के बावजूद समाज महिला को आगे बढ़कर तलाक लेने की आज़ादी कम ही दे पाता है।

तलाक जैसा शब्द उस महिला की चारित्रिक-विशेषता का मुल्यांकन करने लगता है। तलाक तो ले लोगी पर उसके बाद क्या? कमाती-खाती हो, वो भी ठीक है पर रहोगी तो तलाकशुदा ही न? एक पुरुष तलाक लेने के बाद ज़िंदगी की नई शुरुआत कर सकता है। हालांकि भावनात्मक स्तर पर देखें तो तकलीफ़ स्त्री और पुरुष दोनों ही झेलते हैं पर सामाजिक स्तर पर पुरुष को नयी शुरुआत करने की आज़ादी है। उसकी शादी हो जाएगी। तलाक हुआ तो क्या हुआ? अभी-अभी तो शादी हुई थी। जवान लड़का है, अच्छी नौकरी है। बच्चों का भी झंझट नहीं है.. ऐसी बातों के साथ उसके सामने फिर से किसी लड़की का पिता आ जाएगा। अब भी उस तलाकशुदा आदमी की फ़रमाइशें हो सकती हैं कि लड़की सुंदर हो, पढ़ी-लिखी हो, हाइट इतनी हो, दहेज़ इतना हो.. ब्ला-ब्ला-ब्ला।  ये सारी पूरी भी की जाएंगी। अभी-अभी तो शादी हुई थी लड़के की, क्या बुराई है?

उसी आदमी की तलाकशुदा बीवी अगर काम पर जाती है तो लोग कानाफूसी करने लगते हैं कि इसके पति ने तो इसे छोड़ दिया न। इसका तलाक हो गया न। हालांकि लोगों को तलाकशुदा महिलाएं कम ही अच्छी लगती हैं पर अगर अच्छी लगीं भी तो ‘बेचारी’ लगती हैं। अब ये उस महिला का कर्त्तव्य है कि वो बेचारी बनकर रहे। अगर वो बेचारी बनकर नहीं रहती है तो मोहल्ले और ऑफिस के लोग तैयार बैठे हैं कैरेक्टर सर्टिफिकेट देने के लिए। उस आदमी को देखकर अब कोई उसकी पुरानी ज़िंदगी याद नहीं करता पर इस औरत की पहचान ही ये बन जाती है – “ये वही है न जिसका तलाक हुआ था?”

 

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पूरी उम्र अकेले तो न बीत पाएगी। ऐसा वो तलाकशुदा औरत नहीं भी सोचती है तो लोग सोचने लगते हैं। कई बार औरतें मज़बूत हो जाती हैं और दृढ़ निश्चय कर लेती हैं कि वो अकेली रहकर अपना मुकाम हासिल करेंगी। पर जिन लोगों से उस औरत ने आज तक एक गिलास पानी भी नहीं मांगा उन्हें भी चिंता होने लगती है कि ऐसे अकेली कबतक बोझ बनकर बैठी रहेगी। इसको भी कहीं न कहीं ‘सेटल’ तो करना ही है।

‘सेटलमेंट’ के नाम पर शादी और बच्चों से ऊपर न सोच पाने वाले समाज में अगर औरत ने सोच ही लिया कि वो भी एक नयी शुरूआत करेगी तो सब जानते हैं कि उसकी वो शुरूआत कितनी ‘नयी’ होती है। “एक बार शादी हो चुकी है, अब दोबारा शादी करने के लिए कोई कुंवारा लड़का थोड़े न मिलेगा। शादीशुदा थी, 4 महिने या 2 साल रही है उसके साथ। कुछ बाकी तो होगा नहीं। सब हो ही गया होगा। तो कौन कुंवारा लड़का आएगा उससे शादी करने? देख लीजिए अगर ऐसा ही कोई आदमी मिल जाए (जिसका तलाक हो गया हो या जिसकी बीवी का देहांत हो गया हो) तो ठीक रहेगा।”

एक लड़की है देवरिया ज़िले की, अकांक्षा नाम है। पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। उसने एलएलबी किया था। बड़े खुले ख्यालों की लड़की है। घरवाले शादी के लिए रिश्ता देख रहे थे। पैसे की कोई कमी नहीं थी। बढ़िया दामाद तो पैसे से ही मिलता है न। फिर भले बाद में लड़की खुद दहेज़ के विरोध में वकालत करे। एक से बढ़कर एक रिश्ते आए। आईएएस-पीसीएस, डॉक्टर-वकील सब। जो लड़का फाइनल किया गया वो लखनऊ हाई कोर्ट में वकील था। खूब पैसा बहाया गया और शादी हो गई। लड़की ससुराल गई तो लड़का हफ्ते भर में ही लखनऊ चला गया और लड़की को गांव छोड़ आया। अब लड़की भी वकील थी, उसे भी प्रैक्टिस करनी थी। कई बार कहती, लड़का मना कर देता। एक साल बीत गया। बाद में पता चला कि लड़के को कोई दूसरी लड़की पहले से ही पसंद थी जिससे वो शादी करना चाहता था।

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अब ऐसे लड़के के साथ कौन-सी लड़की रहना चाहेगी पर समाज जैसी बला का नाम लेकर लड़के को समझाया-बुझाया गया फिर भी जब बात नहीं बनी तो उन दोनों ने तलाक ले लिया। अभी लड़का चैन से रह रहा है। लड़की घर पर ‘बोझ’ बनी थी क्योंकि लोगों को यही लगता है कि अकेले ज़िंदगी नहीं कटती। उसके लिए लड़का ढूंढा जा रहा था। वो लड़की जो एक हफ़्ते भी अपने ‘पति’ के साथ नहीं रही, उसके लिए लड़का नहीं मिल रहा था। बाद में मिला, एक आदमी जिसकी बीवी मर गई थी। बच्चे हैं या नहीं ये नहीं पता। फिर शादी हुई। लड़की का जीवन समझौता (compromise) बन गया और उसका पहला पति अपना बच्चा खिला रहा है।

एक और किस्सा है। इस दर्द को किस्सा कहना भी अजीब लगता है। लड़की का नाम संजीदा है। उसका परिवार अगले दो मोहल्लों में भी अपनी सज्जनता के लिए जाना जाता था। शराफ़त की जितनी परिभाषाएं हमारा समाज गढ़ता है न, उन सब पर खरी उतरती थी संजीदा। शादी हुई जयपुर के एक डॉक्टर से। दो साल तक रिश्ता चलाया गया फिर तलाक हो गया। क्यों? क्योंकि लड़के को लड़की अब पसंद नहीं थी। लड़की कबतक बोझ बनी रहती? चली आई अपने घर। दूसरी शादी के लिए लड़के खंगाले जा रहे हैं। उस लड़के को अबतक शायद दूसरी लड़की पसंद आ गई होगी पर इस ‘जूठन’ को कौन पसंद करेगा? कोई ऐसा ही जो खुद भी जूठन ही होगा या जिसे अपने बच्चे पालने होंगे, बीवी नहीं होगी।

औरतों के हिस्से के सारे फैसले उनकी तथाकथित ‘पवित्रता’ और वर्जिनिटी को देखकर लिए जाते हैं। औरतें तलाक के बाद जूठन हो जाती हैं और आदमी कुंवारे रहते हैं। जब सामाजिक रवायतों की बातें की जाती हैं तो कानूनी किताबों को संविधान की चौख़ट पर दफ़्न कर दिया जाता है। पुरुष हमेशा हर बार नयी शुरूआत कर सकता है क्योंकि तलाक सिर्फ़ महिलाओं का होता है।

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ओह्ह! तो लड़कियां ऐसे रहती हैं हॉस्टल में?

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एक बात कहें? सच्ची बोल रहे हैं, ड्रामा न समझिएगा। आपलोग लड़कियों को जितना स्वीट, डेलिकेट, क्लासी और पता नहीं क्या-क्या समझते हैं न.. ऐसा होता कुछ नहीं है। दरअसल हम लड़कियां भी आपकी ही तरह हैं। आप जितने नहीं पर फिर भी आपकी तरह। आपकी ये इमैजिनेशन की वजह से हमें ज़बरदस्ती अलग भी बनना पड़ता है कई बार। वैसे हैं तो हम आपसे बेहतर ही 😛 पर हम में बहुत सारी चीज़ें कॉमन हैं।

कभी गर्ल्स हॉस्टल गए हैं आपलोग? हां, पता है आप यही कहेंगे कि कहां से जाएंगे, लड़के अलाउड नहीं होते वहां। अलाउड तो बहुत कुछ नहीं होता जनाब! करने से होता है। गर्ल्स हॉस्टल में भी सिगरेट-सुट्टा-शराब कुछ भी अलाउड नहीं होता। अगर तलाशी ली गई तो किसी को कुछ मिलेगा भी नहीं। पर होता सबकुछ है। 😀

ख़ैर, हम आपको बता रहे हैं कि लड़कियां कैसी होती हैं जब वो अपने जैसी होती हैं, मतलब जब वो हॉस्टल में होती हैं। और वही लड़कियां कैसी हो जाती हैं जब बाहर जाती हैं। पढ़िए, आपके लिए ही लिखे हैं।

 कभी डाइटिंग करती हैं, कभी खाने पर टूट पड़ती हैं

  1. बाहर ये हाल है..

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2. और हॉस्टल में?

Food1..

लड़कियां बड़ी तमीज़दार होती हैं, है न?

  1. बाहर, so disciplined na!

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2. हॉस्टल वाले तेवर भी देख लो ज़रा..

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ओह्ह! कितना sophisticated बनना पड़ता है हमें!

  1. हम born beautiful हैं यार! लुक्स की टेंशन हमें नहीं होती

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2. नानी याद आ जाती है ड्रेस choose करने में! :-/

Dress1..

ख़ैर, ये तो है कि हम कितनी भी unhygienic रहें तो भी लड़कों से साफ-सुथरे ही रहती हैं। फिर भी हमने स्वच्छता अभियान का अकेले ठेका तो नहीं ले रखा न!

  1. उफ़्फ़! मुझसे ये धूल-मिट्टी बर्दाश्त नहीं होती

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2. अब ये भी देख लो।

Bath1..

हम भी शहज़ादी हैं, अपने घर की

मां-बाप ने बड़े लाड़-प्यार में पाला हैWater12. आधी ज़िंदगी तो यहां कपड़े धोते बीत जाती है, इससे अच्छा तो लॉन्ड्री खोल लेती

Water1...

देख लो, तुम्हारे जैसे ही हैं न? फालतू का भौकाल बना रखा है। हम भी नैचुरल हैं यार। इसलिए जब तुम पैर देखकर कहते हो न कि waxed legs नहीं है तो बड़ा गुस्सा आता है। मन करता है कि चिल्ला कर कहूं – बेटा अगर hair removal की बात है न, तो तुम्हारी पूरी बॉडी छीलनी पड़ जाएगी। हां नहीं तो! भालू कहीं के!

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इतने तरह के लोग घूमते हैं इंडियन रेलवे ट्रेन में

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भारत में रहते हो? फिर प्लेन और स्पेसशिप के बारे में भले न जानते हो, ट्रेन में तो घूमे ही होगे। नहीं घूमे तो कैसे हिंदुस्तानी। ट्रेन के सफर में मज़ा आता है? बोर होते हो? बकवास लगता है? सबके अलग-अलग अनुभव होंगे। हों भी क्यों न? किसी को बगल वाले बर्थ पर एक खूबसूरत हसीना या कोई हैंडसम लड़का मिल जाता है तो किसी को हर दूसरी बात पर पान की पीक थूकने वाले दादाजी। सबकी अपनी-अपनी किस्मत है भाई 😉

वैसे एक और बात बताएं? रेलवे ट्रेन में घूमने का सही मतलब तभी है अगर स्लीपर या 3rd एसी में घूमते हो। देखो, इंडिया में इतनी जगह मेट्रो ट्रेन आ गई हैं कि हम सिर्फ़ ट्रेन भी नहीं कह पा रहे हैं, रेलवे ट्रेन कहना पड़ रहा है। हां, तो हम कह रहे थे गुरू कि क्या खाक़ ट्रेन में घूमे अगर स्लीपर या 3rd एसी में न घूमे! ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जनरल बोगी तो भैया सबके बस की बात है नहीं। उसके लिए अलग से होनहार लोग आते हैं जो सात समुंदर पार कर के (सॉरी, सात लोगों के ऊपर चढ़कर) भी ट्रेन में घुसने की हिम्मत रखते हैं। भारत की आबादी कितनी ज्यादा बढ़ गई है ये देखना है तो जनरल डिब्बे में आ जाना। कई लोगों को यहां भी जगह नहीं मिलती तो डिब्बे के ऊपर चढ़ जाते हैं, शाहरुख खान वाले स्टाइल में। कायदे से सरकार को इन्हें भी शौर्य चक्र देना चाहिए, पर नहीं देती तो जाने दीजिए। अब हम क्या कर सकते हैं? वो बड़े लोगों का मामला है।

फर्स्ट और सेकेंड एसी में लोग इतने चैन से सफर करते हैं कि ट्रेन वाली फीलिंग आती ही नहीं है। अरे जहां आपसे चार लोग पूछ न लें कि कहां जाना है? पढ़ते हो कि नौकरी करते हो? वहां कैसी रेल यात्रा। इसलिए यहां आपकी यात्रा को ट्रेन वाली यात्रा नहीं माना जाएगा।

अब आते हैं स्लीपर क्लास पर। इतने लोग यहां मिलते हैं भाईसाहब कि लगता है रिश्तेदारों की दूसरी किश्त मिल गई हो। सवाल भी एक से बढ़कर एक, आप कभी-कभी भूल भी सकते हैं कि अपने बर्थ पर बैठे हैं या केबीसी की हॉट सीट पर। तो कितने तरह के नमूने मिलते हैं यहां, आइए देखते हैं।

ये भाई साहब लोग पिकनिक मनाते चलते हैं। दोस्ती नहीं टूटेगी भले आपकी नींद रात में 10 बार टूट जाए।

train boys

 

बस कुंडली मांगना भूल जाती हैं आंटी जी। बाकी का जनरल नॉलेज बढ़ा लेती हैं पूरी जर्नी में।

Train aunty

 

बहस के लिए न इससे अच्छी जगह मिलेगी और न इससे अधिक वैराइटी के लोग। पूरा संसद यहीं से चलाते हैं ये लोग।

Train men

 

अब भैया, मैडम जी घर से बाहर हैं। इससे बढ़िया मौका थोड़ी न मिलेगा रात भर चैटियाने का। इनकी खुसर-फुसर रात भर चलती है।

train girl

 

अगर ये सब नहीं सुनना है तो कोई मैगेज़िन या नॉवेल निकाल लो और उसी में आंखें गड़ाये रहो। नहीं तो 4 घंटे में भी सारा Moral Science पढ़ लोगे।

train uncle

 

बाप रे! कहां से आते हैं ऐसे मां-बाप जो बच्चों की तारीफ़ करते नहीं थकते? हमें क्यों नहीं मिले बे?

Train kiran

यहां आपको नींद आ सकती है, पर आप अपनी मर्ज़ी से सो नहीं सकते। आपका मिडल बर्थ है और नीचे वाली आंटी अभी थोड़ी देर में खाना खाएंगी। जय-वीरू वाली टोली है ही। ऊपर से रात के 2 बजे भी उठेंगे तो दिखेगा कि मैडम अब भी अपने जानू से बात कर रही हैं। अगर आपका बैठे-बैठे फिल्म देखने का मन है तो आप वो भी नहीं देख सकते। एक अंकल जी बैठे होंगे आपके साथ केबीसी खेलने के लिए। संसद की बैठक भी होती ही है।

ख़ैर, जो भी है.. ये सब इंडियन रेलवे ट्रेन में ही मिलेगा। ऐसा सफ़र कहीं और कहां। 😉 😛

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चिंकारा और काला हिरण मामले में भी बरी हुए सलमान!

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सावन का पहला सोमवार है आज। सप्ताह का पहला दिन भी है। ऐसे में चहल-पहल अपने आप बढ़ जाती है। इसी चहल-पहल के बीच ऐसी ख़बर आई है जो आपके कदम रोक देगी। आप एक बार रुककर ज़रूर जानना चाहेंगे कि ये ख़बर सच्ची है या अभी बस बातें ही हो रही हैं। आपका चौंकना वाज़िब भी है। सुबह-सुबह जब आप ऑफिस भी न पहुंचे हों और किसी कोर्ट का फैसला आ जाए तो अजीब ही लगता है।

तो भैया ख़बर ये है कि मिस्टर सुल्तान, अरे वही सलमान खान बरी हो गए हैं। अब उनपर तो कई केस चल रहे थे, तो बरी किसमें हुए हैं? भैया हिट एण्ड रन वाला मामला तो पिछले साल ही निपट गया था। एक दशक बाद ड्राइवर को अचानक याद आया था कि गाड़ी सलमान भाई नहीं चला रहे थे, वो चला रहा था। इस बार चिंकारा और काला हिरण वाला मामला भी सुलट गया। राजस्थान कोर्ट ने सल्लू मियां को बरी कर दिया।

खुश तो बहुत होंगे आप। अगर कोर्ट नहीं भी बरी करती तो लोग सड़क पर आ जाते सुल्तान बनने और कई लोग ये गिनवाने आ जाते कि ‘भाई’ ने कितने अच्छे काम किये हैं। हम तो बस इतना कहते हैं कि अच्छे कामों के लिए सराहना है तो बुरे कामों के लिए भर्त्सना क्यों नहीं? जब कोई अच्छा करता है तो हम-आप उसे सिर-आंखों पर बिठा लेते हैं तो जब वही इंसान कुछ गलत कर जाए तो क्या उसे एहसास नहीं दिलाया जाना चाहिए कि उसने गलत किया। पर नहीं, वो गलत कैसे कर सकते हैं? वो तो ‘भाई’ हैं।

INDIA-ENTERTAINMENT-BOLLYWOODअब हम पर मत बरस पड़ना भैया। हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। चिंकारा और हिरण मर गए, अब वो जेल भी जाते तो सुधार न होने वाला था। बस इतना होता कि उन्हें याद रहता कि अपनी हद में रहना है। पर आप रहने दें तब न। एक्टर को भगवान बना लेते हैं। अगर कोई बेगुनाह फंस जाए तो बचाने भले न निकलो, सलमान को जेल हो जाए तो अभी अनशन करने लगेंगे। फैन हैं भाई.. आपलोग बहुत प्यार करते हैं न सलमान से? एक ही बात कहनी है – सलमान को सबसे ज्यादा नुकसान आप जैसे फैंस से ही है।

ख़ैर, छोड़िए.. क्या लोड लेना फालतू का। आप भी खुश हो लीजिए। सलमान भाई बरी हो गए, अब जेल न जाएंगे। सारे केस खत्म। हां, एक पंगा हो सकता है। राजस्थान सरकार ने कहा है कि वो इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी। अब देखते हैं आगे क्या होता है। वैसे हमें भी पता है कि भाई का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

वैसे आपको बता दें जिस कोर्ट के फासले सुनने के लिए लोग अपनी चप्पलें घिस देते हैं वहां आज सलमान के आये बिना फैसला हो गया। सब ‘सलमान-इफेक्ट’ है भाई! बधाई हो सलमान!

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एक रेसलर ने हुंकार भरी, है कोई टक्कर में? एक सामान्य लड़की ने आकर धो दिया

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कभी मुक्केबाज़ी देखी है तमीज़ से? नॉक आउट का मतलब समझते हैं। ख़ैर, हर खेल के अपने रूल्स होते हैं इसलिए रेसलिंग के भी। इसमें नॉकआउट तब माना जाता है जब रेसलर इस प्रतियोगिता में हार मान जाए और कैनवस पर हाथ रख दे। अब ये लुडो और गिल्ली-डंडा तो है नहीं, दमदार लोगों का खेल है भैया। सबके बस की बात थोड़ी है।

तो इसमें जो जीतता है उसका भौकाल भी बनता है। वो पूछता है कि – है कोई शूरवीर, माई का लाल जो मुझे हरा सके? ऐसा ही हुआ इन मैडम जी के साथ। रिंग में खड़ी होकर दहाड़ मार रही थीं। एक लड़की उठकर आई, उसे तो रेसलिंग के रूल्स भी नहीं पता थे। मार-मारकर बिछा दिया मैडम को। आप खुद ही देखिए।

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ब्रेकअप के बाद लड़की का वो आखिरी ख़त

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हम और हमारा समाज रिश्तों पर टिका हुआ है। वक्त के साथ कई रिश्ते गहरे होते चले जाते हैं, कई बोझिल हो जाते हैं। एक तरफ से कोई भी रिश्ता चला पाना संभव नहीं है। डोर दोनों तरफ से न पकड़ी गई हो तो नीचे की ओर ही जाती है। ऐसे ही एक रिश्ते के टूटने पर जिसे ब्रेकअप कहते हैं (हालांकि यह ब्रेकअप से बहुत बड़ा और बहुत आगे का कुछ है) एक लड़की ने ख़त लिखा है अपने उस हमसफर को जिसके साथ उम्र भर रहने के वो सपने देखती थी। अब वो नहीं देखती वो सपने, अब वो जाग गई है। अफ़सोस अब कोई नहीं है जो उसे दोबारा नींद दे सके, वही सपने दिखा सके।

जो बचा रह गया हमारे बीच

…………

अंत जैसा अग़र वाकई कुछ होता है तो यह सचमुच आखिरी है। और अगर निरंतरता सत्य है तो बचा रह गया हम किसी न किसी रूप में जी लेंगे।

मैंने इतने लम्बे अरसे में तुम्हें कभी नाम से नहीं पुकारा। इस ख़त में भी नाम नहीं दे पा रही कि मामूली से हट कर कुछ किया तो बेवजह तुम्हें याद आऊंगी। मैं तुम्हें याद आना चाहती हूं या नहीं सवाल यह नहीं। सवाल यह है कि तुम मुझे किस रूप में याद करते हो। जिस तरह करते हो उस से बेहतर तुम्हारी स्मृति के किसी गड्ढे  में गिर जाना है। पर तुम इतने उदार कब थे कि स्मृति के उस भाग में मुझे जगह दो जहां से तुम मुझे अपमानित न कर सको।

जीवन का व्यंग्य देखो कि सब अपने मन का कर भी मैं भटक कर उस रास्ते पर लौट आती हूं जो मैं छोड़ गयी थी। तुम्हारा अक्स ढूंढ़ते हुए मैं किस वीराने में आ पहुंचती हूं यह तुम कहां जान पाओगे। और तुम जानना भी क्यों चाहोगे… तुम्हारे लिए तो मैं नफरत का बायस हूँ।

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मैं अब भी हर रात ख़्वाब देखती हूं। तुम कहा करते थे कि ख़्वाब में मन की दबी इच्छाएं दिखती हैं। मुझे लगता था ख़्वाब बस ख़्वाब होते हैं। रोज़ के तनाव से एक एस्केप, एक जादुई दुनिया। मैं हर रोज़ तकिये के नीचे किताब का एक पन्ना मोड़ कर सोती थी और मनाती थी कि काश ऐसा ही कुछ ख़्वाब में मेरे साथ घट जाए। पर अब मैंने खुद की ही तरह अपने ख्वाबों को भी निर्जनता में भटकने को छोड़ दिया है। अब मुझे उनसे कोई लगाव नहीं।

फिर भी कुछ ख़्वाब होते हैं जो बीते दिन याद दिलाते हैं। जैसे आज का ख़्वाब। आज ख़्वाब में बर्फीले पहाड़ की चोटी पर थी। ठीक वहां, जहां मैं हमेशा जाने को कहा करती थी। मैं दूसरी ओर उतर जाना चाहती थी मग़र मुझे लौटना पड़ा। हमें हमेशा लौटना पड़ता है। जैसे मैं सिर्फ़ तुम्हारी थी पर मुझे खुद के पास अंततः लौटना पड़ा। ये दीगर बात है कि मैं बीच में रास्ता भूल गयी। मैं तुम्हारी न हो पायी। मैं खुद के पास भी नही पहुंच पायी।

तुम्हें मैं हमेशा ‘लॉस्ट सोल’ लगती थी। तुम हमेशा कहते थे कि नियति मेरे साथ एक रोज़ ऐसा खेल खेलेगी जिसके पासे मेरे पास नहीं होंगे। मैंने नियति को यह खेल रचने दिया क्योंकि इसके अंत में तुम मुझे मिलने वाले थे। यहां तक कि इस खेल में हिस्सा भी लिया। पर अन्ततः वही हुआ जो तुम कहते थे या शायद मन ही मन चाहते भी थे।

Breakup2

मुझे हमेशा लगता था कि तुम मेरी खुशियों से खुश नहीं होते। या शायद अगर मेरी खुशी का कारण तुम न हो तो तुम्हें खुश नहीं होती। पर मेरे लिए सदा तुम्हारी प्रसन्नता सर्वोपरि रही। तुम जब-जब सही साबित हुए तुम्हारी ख़ुशी की सीमा नहीं होती थी। और जब जब तुमने मुझे ग़लत साबित किया तुम्हारा अहम किस क़दर तुष्ट होता था यह मुझसे छिपा नहीं रहा था। तुम्हें खुश करने को मैं कितनी ही बार खुद को अनुचित ठहराती रही।

इस बार भी तुम्हें मेरे जीवन की इस गति पर प्रसन्नता ही होगी। तुम सीना तान कर दुनिया को दिखा सकोगे कि तुम्हें छोड़ कर मैंने ग़लती की। पर सच कहना… क्या मैंने तुम्हें छोड़ा या तुमने मुझे विवश किया था। तुम नहीं जानते, पर तुम्हारी रूह जानती होगी। जैसे मेरी आत्मा जानती है कि उसकी मुक्ति कहां है।

काश! तुमने मुझ पर यक़ीन किया होता। मुझे उड़ने को आसमान दिया होता। मेरी खिड़कियों पर पहरे न लगाये होते। मेरी हदबंदियां न की होतीं। बस कहा होता कि तुम हो तो मैं हूं। मैं कहीं जाती ही नहीं।

मैं जाना नहीं चाहती थी। मैं चाहती थी तुम मुझे थामे रखो। मन ने चाहा था तुम दौड़े चले आओ। मुझ पर अपना अधिकार घोषित करो। मुझे तहस-नहस करने की धमकियां दो।

और कुछ न सही मेरे गले लग रोओ। मुझसे सवाल करो। कहो… मैं तुम्हें अब भी चाहता हूं। तुम वादा भूल गयी मग़र मैंने कुछ नहीं बिसराया। काश तुम मुझे लौट लाते। खुद से दूर करने की बजाय मुझे एक बार आवाज़ देते। मैं दौड़ी चली आती। मैं ठहर जाती।

न जाने क्यों यक़ीन था कि तुम मुझे गिरने नहीं दोगे। मैंने खुद को हर तरह से तुम्हें सौंप दिया था। पर जैसे ही मेरा एक कदम फिसला तुमने मुझे दोगुने वेग से धक्का दे दिया। मैं नीचे, और नीचे गर्त में गिरती गयी। काश तुम देख पाते, मेरा कोई हिस्सा अब भी उतना ही उजला होगा और उसे खोज पाते।

तुम यह नहीं कर पाये इसका तुम्हें कोई दोष नहीं देती। तुम यह कर पाने लायक भी नहीं थे। मैं ही तुमसे ज़्यादा अपेक्षा कर बैठी थी। दूसरों का उजलापन देखने के लिए खुद के अंधेरों से बाहर आना पड़ता है जो तुम कभी नहीं कर पाए। पर यह सब मैं अब देख समझ पाती हूं।

मैं तुम्हें अब भी ढूंढ़ती हूं, यह बताने के लिए कि अच्छा हुआ तुमने मुझे नहीं रोका। मेरा जीवन अपूर्ण भले ही रह गया पर अब जीवन का अर्थ मुझसे अनजाना नहीं रहा।

यह सत्य है कि तुम्हारा स्थान कोई नहीं ले सका मग़र यह भी सत्य ही है कि अब वह स्थान समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। मेरा हर दुःख तुम्हारे लिए प्रसन्नता का विषय रहा है। तुम्हारे आकलन पूरी तरह सही सिद्ध नहीं हुए इस बार यही मेरा दुःख है।

सब ख़त्म होने के बाद भी जो बचा रह जाता है उसका सिरा हाथ से छूटने से पहले तुम्हें लिख देना चाहती थी।

विदा..

~ मैं

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साभार

दिव्या विजय

Divya

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जब सिद्धू पाजी ने मारा थप्पड़ और गुरनाम सिंह की हुई मौत!

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कल तक यह कहा जा रहा था कि लोगों ने फालतू का हो-हल्ला मचा रखा है। नवजोत सिंह सिद्धू ने सिर्फ़ राज्यसभा से ही तो इस्तीफा दिया है। भाजपा में अब भी बने हुए हैं। आज सिद्धू पाजी ने सबका मुंह बंद करते हुए भाजपा से भी इस्तीफा दे दिया और बताया कि उनके लिए पंजाब से बड़ी कोई पार्टी नहीं है।

अब पाजी भी क्या करें? पंजाब से खासा लगाव है उन्हें, 4 बार चुनाव भी जीत चुके हैं। फिर भी भाजपा को पता नहीं क्या सूझा कि उन्हें पंजाब से दूर रहने को कह दिया। वहां अच्छी खासी फैन-फॉलोइंग है सिद्धू पाजी की। भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है पंजाब में, फिर भी अरुण जेटली को अमृतसर से चुनाव लड़वाया। पाजी मन मसोस कर रह गए और शायद उन्हीं की हाय लगी कि जेटली जी भी चुनाव हार गए। आज पाजी बड़े ही कूल इंसान माने जाते हैं, एक समय था जब उन्हें आए दिन गुस्सा आता था। द कपिल शर्मा शो में देखकर नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता कि वो इंडिया की बड़ी-बड़ी कॉन्ट्रोवर्सीज़ में रहे होंगे। आपको पता है कि सिद्धू के नाम पर एफआईआर दर्ज है? उन्हें उम्र कैद की सज़ा होने वाली थी? आइए बताते हैं उनकी ज़िंदगी से जुड़े कुछ विवादों के बारे में।

जब सिद्धू ने अज़हरुद्दीन से कहा – मैं तुम्हारे साथ अब और नहीं खेल सकता

Sidhu Azhar

यह घटना है सन् 1996 की जब ओडीआई के तीसरे दिन इंग्लिश टूर पर गए क्रिकेट खिलाड़ियों के बीच नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया। उस वक्त के मैनेजर संदीप पाटिल का कहना था कि सीनियर खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे थे इसलिए तीसरे ओडीआई में सिद्धू और मंजरेकर को ड्रॉप किया गया पर बात का बतंगड़ बना दिया गया। अब बतंगड़ कैसे बना, आइए बताते हैं। उस दिन इंडियन टीम के कप्तान अज़हरुद्दीन ने टॉस जीता और बैटिंग का फैसला किया। न ही अज़हरुद्दीन ने और न ही मैनेजर संदीप पाटिल ने सिद्धू को बताया था कि उन्हें निकाला जा चुका है, फिर भी कुछ खिलाड़ियों को इसकी भनक थी। जैसे ही अज़हरुद्दीन ने बैटिंग का फैसला लिया, ओपनर रहे सिद्धू ने पैड चढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ खिलाड़ी दबी हंसी के साथ चुटकी ले रहे थे तो कुछ ने सरदारों पर बने चुटकुले सुनाने शुरू कर दिए। इससे सिद्धू ने अपमानित महसूस किया और ट्रिप वहीं ड्रॉप कर दिया। उन्होंने कहा कि मैंने अपने पिता से वादा किया था कि अपनी ज़िंदगी इज़्ज़त के साथ जीऊंगा और जबतक मैं इस टूर पर रहूंगा, ऐसा संभव नहीं है।

जब उन्होंने अपने सीनियर मनोज प्रभाकर को थप्पड़ जड़ दिया

Sidhu Prabhakar

बात कुछ बड़ी नहीं थी, पर जब बात बढ़नी होती है तो बढ़ ही जाती है। यह घटना तब की है जब एक क्रिकेट ट्रिप पर सिद्धू अज़हरुद्दीन, कपिल देव और मनोज प्रभाकर के साथ अज़हर के कमरे में फिल्म देख रहे थे। फिल्म देखते हुए सिद्धू ने कहा कि ये फिल्म उन्होंने देखी हुई है। फिर उन्होंने कपिल से कहा कि वो दूसरी डीवीडी अपने कमरे में ले जाना चाहते हैं ताकि वो दूसरे प्लेयर्स के साथ कोई दूसरी मूवी देख सकें। जैसे ही सिद्धू डीवीडी की ओर बढ़े, प्रभाकर ने चिल्लाकर कहा कि डीवीडी को हाथ भी न लगाना! सिद्धू ने सोचा कि चलो भैया, सीनियर हैं, मान लेते हैं.. और वो वही फिल्म देखने बैठ गए। फिल्म देखते-देखते सिद्धू का रसगुल्ले खाने का मन हुआ जो वो खुद ही लेकर आए थे। जैसे ही रसगुल्ले उठाने वो टेबल की ओर बढ़े, प्रभाकर ने उन्हें फिर से रसगुल्लों को हाथ लगाने से रोका। इस बार पाजी ने पूछा – आप लेकर आए हैं ये? प्रभाकर ने जवाब दिया कि मुझे नहीं पता कौन लेकर आया है पर मैं कह रहा हूं तो मत छूओ। इतने पर पाजी का पारा चढ़ गया और बिना एक भी मिनट की देरी के उन्होंने सीनियर जी को एक थप्पड़ जड़ दिया।

जब उन्होंने इंटरनेशनल मैच में की चीटिंग

Sidhu BigBoss

और वो कहते हैं कि उन्हें इस बात का पछतावा भी है। पर पछतावा इतनी देर में हुआ कि खेत चुगने के बाद वाली चिड़िया का भी नाम-पता गुम हो गया था। अब पाजी ने चीटिंग की थी तो हमें कैसे पता! हमें बिग बॉस ने बताया भैया। वहीं लाइ डिटेक्टर टेस्ट हुआ था। तब पाजी ने कहा कि हां, उन्होंने चीटिंग की थी। उन्होंने शरजाह में कर्टनी वॉल्श का कैच बाउंड्री रोप में पकड़ा था। और इंडिया वो मैच जीत गई थी। अब देखो कर दी न चीटिंग! पाजी के इस बयान को लेकर खूब बवाल भी हुआ। कई लोग इंडियन क्रिकेट टीम को कोसने आ गए तो कई लोगों ने कह दिया कि सिद्धू ने बिग बॉस के लिए झूठ बोला होगा, ऐसे शोज़ भी तो मसाला मांगते हैं न!

जब सिद्धू पर लगा हत्या का आरोप, दर्ज हुआ एफआईआर

Sidhu Homicide

कई लोग ये ख़बर सुनकर चौंक जाते हैं। लोगों को विश्वास ही नहीं होता कि सिद्धू पाजी कभी ऐसे भी रहे होंगे। पर सच्चाई यही है मेरे दोस्त! यह घटना है दिसम्बर 1988 की। 27 दिसम्बर को सिद्धू अपने दोस्त के साथ मारुति में सवार हो पटियाला की सड़कों पर निकले। मामूली-सी बात थी पर सिद्धू पाजी उन दिनों कुछ भी मामूली थोड़ी रहने देते थे। गुस्सा सातवें आसमान पर होता था। गुरनाम सिंह नामक ट्रांसपोर्टर ने उन्हें ओवरटेक किया। इस बात पर पहले बहस हुई और फिर हाथा-पाई हो गई। अब सिद्धू पाजी का हाथ भी तो हथौड़ा है न। 55 वर्षीय गुरनाम सिंह पहले से दिल के मरीज़ थे। उन्हें थप्पड़ पड़ा और वो वहीं मर गए। इस केस में जो सबसे बड़ी गलती इन्होंने की वो ये कि मारने के बाद गुरनाम सिंह के गाड़ी की चाबी लेकर वो भाग गए और मुड़कर मदद भी नहीं की। इस मामले में सिद्धू मोस्ट वॉन्टेड बन गए थे पर उन्होंने बेल ले ली और बाद में ये साबित कर दिया कि गुरनाम सिंह पहले से बीमार थे इसलिए मर गए, सिद्धू का उन्हें मारने का कोई इरादा न था।

जब सिद्धू ने गुरबानी के साथ की गुस्ताख़ी

नवजोत सिंह सिद्धू लुधियाना में भाषण दे रहे थे। उन्होंने सिखों के पांचवे गुरू, गुरू अर्जन सिंह के बोले गए कुछ शब्द दोहराए और कहा कि ये शब्द महाभारत के अर्जुन ने कहा था। इस पर सिख गुरुओं ने उन्हें खूब लपेटा था। सिद्धू तबतक ठंडे रहने लगे थे और इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि जब ईश्वर उनके साथ हैं तो कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

… और आज नवजोत सिंह सिद्धू ने भाजपा के ख़िलाफ़ खुले मंच पर बोलकर यह तो जता दिया है कि पार्टी ने उन्हें उचित स्थान नहीं दिया पर साथ ही पार्टी से अपने मधुर संबंध भी खत्म कर लिये हैं। ख़ैर, ऐसी रिश्तेदारी का करते भी क्या? सिद्धू को पंजाब से दूर रखा था, अब यह कैसे हो सकता है भला। भाजपा ने ऐसा क्यों सोचा ये तो वही जाने क्योंकि पंजाब में सिद्धू के अलावा उसके पास कोई मज़बूत चेहरा भी नहीं था। अकाली दल की सहायता के बिना वहां जीतना बहुत ही मुश्किल था, अब मुश्किलें और बढ़ेंगी गुरू.. देख लो! सिर्फ़ ताली ही ठोकते रह जाओगे। सिद्धू पाजी तो चले गए।

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सौर्यमंडल में जल रहा है कुछ, क्या ख़ाक़ हो जाएगी दुनिया?

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दुनिया ख़ाक़ हो जाएगी, बर्बाद हो जाएगी, प्रलय आ जाएगा, सबकुछ तबाह हो जाएगा। ऐसा हमलोग पहली बार नहीं सुन रहे हैं। हर 3-4 साल में ऐसा एक बार सुनने को मिल ही जाता है। एक बार सन् 2009 में ये बात सामने आई थी कि पृथ्वी की लाइफ खत्म होने वाली है। अब सबकुछ खत्म हो जाएगा। हम आपको पहले ही बता दें कि इस बार आप ऐसा कुछ नहीं पढ़ने वाले हैं। आपको अंधविश्वास में धकेलना या डराना हमारा मकसद नहीं है, NASA ने हाल ही में कुछ देखा है, बस वही बता रहे हैं।

सूरज पर हर पल नज़र रखने वाली NASA की सोलर डाइनामिक्स ऑब्ज़रवेट्री ने अपने कैमरे में दमदार रेडियेशंस रिकॉर्ड किये हैं। ये किरणें सूरज से निकलकर उसमें फूट रही हैं और चिंगारी-सी दमक निकल रही है। ये घटना है 9 या 10 जुलाई की। उस वक्त नासा के वैज्ञानिकों को सूर्य के उस विस्फोट को देखने से मना किया गया था लेकिन 4k resolution के इस वीडियो में इसे बड़ी खूबसूरती से रिकॉर्ड किया गया है।

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बताया जा रहा है कि सूर्य से निकल रही ये दमक हमारे ग्रह के आकार से 5 गुना बड़ी थी। अब सोच लीजिए अगर आप आस-पास होते तो क्या हो सकता था। सूरज प्लाज़्मा से बना है, एक गैस जिसमें negative electrons पॉज़िटिव आयन्स के चारों तरफ घूमते हैं और charged particles का एक पावरफुल मिक्स तैयार करते हैं। प्लाज़्मा सॉलिड, लिक्विड या गैस नहीं होता। ये मैटर का कोई चौथा स्टेट होता है और सूरज इतना गर्म होता है कि वो nuclear reactor की तरह काम करता है।

इस वीडियो को extreme ultraviolet light की वेवलेंथ में कैप्चर किया गया है जो आंखों से नहीं दिखती। इसलिए वैज्ञानिकों ने इसको रंग दिया है ताकि हम और आप इसे देख सकें।

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डियर समाज! मैं बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं हूं…

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एक लड़की थी बनारस की, रमा नाम था। आज से करीब 30 साल पहले उसकी शादी हुई थी। उस वक्त रमा ने बीएचयू से ग्रैजुएशन किया था। अपने घर की इकलौती बेटी थी। शादी जिस परिवार में हुई वहां लड़का तीसरा बेटा था। 2 साल बीत गए पर कोई ‘खोज-ख़बर’ नहीं मिली। खोज-ख़बर समझते हैं न आप? अरे मतलब पता नहीं चला कि नयी बहू प्रेग्नेंट है या नहीं। दो साल होते-होते घर वालों ने हर दूसरे दिन ये पूछना भी शुरू कर दिया। कुछ दिनों में रिश्तेदार भी इस डिपार्टमेंट में घुसने लगे। तब पता चला कि कुछ प्रॉब्लम है.. प्रॉब्लम है! हाय दैय्या! अब क्या होगा?

लड़की का इलाज कराया गया। पता चला कि उसके यूटेरस में काफी कॉम्प्लिकेशंस हैं। हर रोज़ दवा खाती थी, नसीहतों और उलाहनों की खुराक के साथ। कुछ खास फायदा नहीं हुआ। डॉक्टर बदले गए और शादी के चौथे साल तक उसकी ज़िंदगी जन्नुम हो गई। अब वो बहू नहीं रही, कैसी बहू अगर बच्चा ही न पैदा कर सके? उसके पति के लिए लड़कियां देखी जाने लगीं, जो सुंदर हों या फिर थोड़ी ‘खराब’ भी चलेंगी। उनका ‘खराब’ होना भी सिर्फ़ शक्ल पर निर्भर करता है। पर बहू चाहिए जो बच्चा पैदा कर सके। रमा जानें कैसा महसूस करती होगी। उसके पति की शादी नहीं हो पाई। कुछ वजहें रही होंगी। आज भी वो अपने पति और घरवालों से उसके लिए उलाहनें सुनती है।

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एक लड़की है नीलम, कानपुर की रहने वाली है। शादी हुई ग्वालियर में। ‘मोटी रकम’ देकर, खूब तारीफ हुई शादी की। फिर दो ही महीने में वह प्रेग्नेंट हो गई। नीलम ये बच्चा नहीं चाहती थी। पर उसकी कौन सुनता, ससुराल को अपना वारिस चाहिए था। सासु मां को पोते का मुंह देखना था। ग्रैजुएशन पूरा होते ही नीलम की शादी हुई थी और 22 वर्ष में वो मां बन गई। अब वो बच्चा पाल रही है। उसकी नैपी चेंज कर रही है। उसके साथ की लड़कियां अभी जॉब कर रही हैं, गोवा और पैरिस घूम रही हैं। उसे शादी करनी थी पर बच्चा इतनी जल्दी नहीं चाहिए था। इंडिया में शादी भी अपनी मर्ज़ी से कहां होती है कि बच्चे पर अपनी मर्ज़ी चलेगी। गर्भ नीलम का था पर फैसला पूरे घर ने लिया।

ज्यादातर केस में पहले लोग शादी करते हैं इसलिए क्योंकि घर की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। फिर जब घर की देखभाल करने के लिए मुफ्त की बाई मिल जाती है (हां, मैं उसे बाई ही कहूंगी क्योंकि कई घरों में लोगों को घर के काम करवाने के लिए ही बहू चाहिए होती है) तो लोगों को आंगन में गूंजती किलकारी की ज़रूरत महसूस होती है। लड़की आपके लिए मां भी बन जाए, भले ही उसकी इच्छा न हो। जहां तक वो आपके हिसाब से चले वहां तक तो ठीक है, जहां कोई भी अड़चन आई वहां दिक्कतें शुरू। समाज की सच्चाई यही है कि धरती का सृजन करने के लिए औरत की ज़रूरत होती है और इसी नैतिक वाक्य की आड़ में लोग अपनी घटिया महत्त्वकांक्षाएं ठेल देते हैं। औरत समाज की सृजनकर्ता है और औरत का काम ही सृजन है.. इन दो वाक्यों में फ़र्क है। लोग बोलते पहला वाला हैं और मानते हैं दूसरा वाक्य। तथाकथित प्रोग्रेसिव कहलाने वाले लोगों की भी सारी सोच खंडहर में चली जाती है जब उन्हें पता चल जाता है कि उनकी पत्नी उन्हें बच्चा नहीं दे सकती। कुछ सालों तक इमोशनल अटैचमेंट रहता है और फिर बात यहीं आकर रुक जाती है कि वो औरत बच्चा नहीं जन सकती।

आज कोर्ट ने एक महिला – मिस X, को अबॉर्शन की अनुमति दी। वो बच्चा जो उसकी मर्ज़ी से उसकी गर्भ में नहीं रुका, जो उसी का खून-पानी पीकर बढ़ रहा था, उस बच्चे को खत्म करने के लिए कोर्ट की परमिशन चाहिए। गर्भ कोर्ट का नहीं था, उसके मंगेतर का भी नहीं था। समाज का तो बिल्कुल नहीं था। पर निर्णय में सबकी भागीदारी थी।

एक लड़की की शादी होती है उसके बाद उसकी महत्ता यही बात सुनिश्चित करती है कि वो परिवार पूरा कर सकती है या नहीं। अब परिवार कैसे पूरा होगा? जब वो बच्चे पैदा करेगी। अगर वो ये काम नहीं कर सकती तो उसका अस्तित्व घुलता जाता है। बच्चे जनने के अलावा बाकी काम तो घर की बाई भी कर ही सकती है! तो अगर वो बच्चे नहीं जन सकती तो उसका काम ही क्या!

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डियर समाज! आपको पता है कि दुनिया में यही एकमात्र काम है जो आप हमारे बिना नहीं कर सकते। पर इसका मतलब ये नहीं कि हम सिर्फ़ इसी काम के लिए पैदा होती हैं। इसके अलावा भी हमारे पास 50 हज़ार और काम हैं। हमें कितने बच्चे पैदा करने हैं, कब पैदा करने हैं, वो लड़का होगा या लड़की सब आप डिसाइड करते हैं। बस शरीर हमारा होता है। डियर समाज! हम औरतें बच्चा पैदा करने वाली मशीनें नहीं हैं।

दुनिया सिंगल पैरेंटिंग तक पहुंच चुकी है और आपका दिमाग वहीं अटका हुआ है कि घर सूना लगता है, काम नहीं किया जाता तो बहू ला दो। हमारे गर्भ पर हमारा अधिकार होना ही चाहिए। अबॉर्शन और प्रेग्नेंसी जैसे शब्दों को हव्वा बनाना छोड़ दें। आप चाहते हैं कि बच्चा दुनिया में आए, ये ठीक है। पर उस बच्चे को लाने का माध्यम अगर मैं नहीं बनना चाहती, तो इस बात को भी कुबूल करने की आदत डाल लें।

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डॉ. कलाम एक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे, आधी रात को पहुंच गए देखने कि बच्चों की तैयारी कैसी है

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राष्ट्रपति तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ही थे। सरल-सहज और साधारण। उनकी कॉपी पर परीक्षक ने खुद लिखा था कि “examinee is better than examiner.” बचपन से हम ऐसे ही उदाहरण सुनकर बड़े हुए। स्कूल-कॉलेज में कभी टॉप भी किया और कई बार परीक्षाओं में सवालों के जवाब इतनी बखूबी दिया करते थे कि अपने आंसर से प्यार हो जाता था, पर कभी किसी परीक्षक ने नहीं कहा कि हमारा जवाब उनके जवाब से भी बेहतर हो सकता है।

जब हम राजेंद्र प्रसाद के किस्से सुनते थे तो मन गदगद हो जाता था। पर सबकुछ उन अनेकों कहानियों जैसा ही होता जो बेहद प्रभावशाली तो थीं पर कल्पना मात्र ही बनी रहती थीं। हमने राजेंद्र प्रसाद को नहीं देखा था, यही सोचकर संतोष कर लेते थे कि सच में कलियुग आ गया है, अब ऐसे लोग पैदा न होंगे। सन् 2002 में भारतवर्ष को नया राष्ट्रपति मिला, नाम था डॉ. अवुल पाक़िर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम। अचानक ही बच्चों की रुचि किसी राष्ट्रपति में बढ़ने लगी। अब वो बच्चे या युवा उन्हें सिर्फ़ जनरल नॉलेज में एक नम्बर ज्यादा पाने के लिए याद नहीं करते थे। वो जानना चाहते थे कि कलाम सर ने स्पीच में क्या कहा है। उनके बोले हुए शब्द अपने कमरे की दीवारों पर गुदवा लेते थे।

सपने वो नहीं होते जो तुम सोने के बाद देखते हो
सपने वो होते हैं जो तुम्हारी नींद उड़ा दें।

कलाम सर को गुज़रे एक वर्ष पूरे हो गए। दुनिया के कई हज़ार बच्चे उनसे मिलना चाहते थे, उनकी तमन्नाएं अधूरी रह गईं। उनके जीवन के ऐसे कई किस्से हैं जिन्हें सुनकर ऐसा लगता ही नहीं कि वो हमारी जेनरेशन में रहकर चले गए। हमें फ़क्र होने लगता है कि हम वो पीढ़ी हैं जिसने उन्हें देखा, समझा और जाना है। जिन्हें देखकर कलाम सर मिशन 2020 के सपने देखते थे।

डॉ. कलाम उस वक्त DRDO में थे। उस वक्त उसके कम्पाउंड को और सुरक्षित करने के लिए सुझाव दिए जा रहे थे। एक बहुत साधारण-सा सुझाव आगे आया, जिसे हम में से कई लोग अपने घरों के लिए भी अपनाते हैं। सुझाव ये था कि बाउंड्री पर टूटे हुए शीशे लगवा दिए जाएं ताकि कोई बाउंड्री चढ़कर अंदर न आ सके। कलाम ने इस सुझाव को यह कहकर ठुकरा दिया कि शीशे की वजह से पक्षी भी बाउंड्री पर नहीं बैठ पाएंगे। चिड़ियायें कहां जाएंगी?

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हमारे यहां जब भ्रष्टाचार की बातें होती हैं तो बड़े लोगों का नाम लिस्ट में सबसे ऊपर आता है। बहुत कम लोगों को पता है कि डॉ. कलाम अपनी तनख़्वाह भी नहीं लेते थे। इससे पहले कि मैं ये बात कहीं और पढ़ती, मेरे पिता ने मुझे इसकी जानकारी दी थी। वो उस वक्त राष्ट्रपति भवन में तैनात थे। भारत के राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपतियों की देखभाल भारत सरकार करती है। जब कलाम को यह पता चला तो उन्होंने अमूल के संस्थापक डॉ. वर्गीज़ कुरियन से पूछा कि – अब जब भारत सरकार मेरा खर्च वहन कर रही है तो मैं अपने वेतन का क्या बेहतर कर सकता हूं? इस तरह कलाम अपनी पूरी तनख़्वाह एक ट्रस्ट को देने लगे जिसका नाम था – PURA (Providing Urban Amenities to Rural Areas)। हमें लगता है कि इस ट्रस्ट का मिशन आप इसके नाम से ही समझ गए होंगे।

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एक बार डॉ. कलाम को एक कॉलेज के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि जाना था। वो बच्चों की तैयारी देखने को बहुत उत्सुक थे। देखना चाहते थे कि विद्यार्थियों ने कितनी तैयारियां कर ली हैं और क्या-क्या करने में लगे हुए हैं। कार्यक्रम से ठीक एक दिन पहले वो रात में अपनी जीप से बिना किसी सिक्योरिटी के उस कॉलेज पहुंचे। ये उन्हें भी पता था कि आखिरी दिन बच्चों को रात तक लगे रहना पड़ता है। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि डॉ. कलाम इस तरह बिना बताए रात में ही आ जाएंगे। उन्होंने वहां की तैयारी देखकर कहा कि वो असली हार्डवर्किंग लोगों से मिलना चाहते थे। उन लोगों से मिलना चाहते थे जो दिन-रात इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए लगे हुए हैं।

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  एक वक्त जब कलाम सर DRDO के मैनेजर थे, काम का बहुत प्रेशर रहा करता था। एक वैज्ञानिक ने अपने बॉस, मतलब डॉ. कलाम से कहा कि आज वो घर के लिए जल्दी निकलना चाहता है क्योंकि उसे बच्चों को लेकर exhibition (प्रदर्शनी) दिखाने ले जाना है। डॉ. कलाम ने मुस्कुराते हुए परमिशन दे दी और वह वैज्ञानिक खुशी-खुशी अपने काम में लग गया। बद्किस्मती से उसका काम ठीक समय पर पूरा नहीं हो पाया और उसे घर पहुंचने में देरी हो गई। पछतावे वाले भाव के साथ जब वो घर पहुंचा तो उसने देखा कि बच्चे नहीं हैं। उसने अपनी पत्नी से पूछा कि बच्चे कहां हैं? तब पता चला कि मैनेजर सर शाम के करीब सवा पांच बजे घर पर आए थे और बच्चों को exhibition दिखाने ले गए। हम में से बहुत कम लोग अपने बॉस से समय पर छुट्टी देने की भी उम्मीद रखते हैं।

ऐसे बहुत सारे किस्से हैं डॉ. कलाम के। एक बार मेरे पिता की ड्यूटी राष्ट्रपति भवन में लगी थी। कलाम सर आफिस से घर को लौट रहे थे। डैडी के साथ दूसरे लोग भी वहां ड्यूटी पर तैनात थे। उनमें से एक सिपाही डॉ. कलाम को नहीं पहचानता था। उसने उन्हें चेकिंग पॉइंट पर रोक लिया। कलाम सर चुपचाप खड़े थे। उन्होंने चेकिंग में पूरा सहयोग किया और सिपाही के परमिशन का इंतज़ार करने लगे। डैडी और दूसरे लोगों ने उसे इशारे से कहा कि ये राष्ट्रपति साहब हैं, तब जाकर उसने उन्हें जाने दिया और बाद में अफसोस भी जताया। डॉ. कलाम बिल्कुल भी नाराज़ नहीं थे। उनके हाव-भाव में कहीं भी राष्ट्रपति होने का दंभ नहीं था इसलिए भी सिपाही को उन्हें पहचानने में मुश्किल हुई।

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बचपन से इस महानायक के किस्से सुनकर बड़े हुए। आज इस परम साधारण और महानतम इंसान की पहली पुण्यतिथि है। आज के दिन पिछले वर्ष हमने उस व्यक्तित्व को खो दिया जो सही मायने में गंगा-जमुनी तहज़ीब का उदाहरण था। हमारे लिए यह इस सदी की सबसे बड़ी क्षति थी। पर अब यकीन हो चला है कि ऐसे महानायक कहानियों और कल्पनाओं से निकल कर हकीक़त की ज़मीन पर भी उतरते हैं। देश के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति को हमारा शत्-शत् नमन!

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आज की तारीख़ में एक और घटना हुई थी, इस देश ने अपना एक और बेटा खोया था

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कितनी ज़रूरी है ‘Periods’के दौरान छुट्टी

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माहवारी, मासिक धर्म, पीरियड्स, menstruation cycle ये सब नाम हैं उस प्राकृतिक स्थिति के जिससे हर लड़की हर महीने गुज़रती है। स्कूलों में लड़कियां इसे ‘प्रॉब्लम’ कहकर भी कोड करती हैं। आपस में बात करते हुए ‘डाउन होना’ भी कहती हैं। मासिक धर्म या पीरियड्स क्या है ये बताने की ज़रूरत नहीं लगती। NCERT की क्लास 8th की साइंस बुक सब बता देती है।

माहवारी के दौरान दो समस्याएं होती हैं। एक तो खुद वो माहवारी और दूसरा उस माहवारी को छिपाए रखना, ज़ाहिर न होने देना।

महिलाओं को सामान्य जीवन जीना होता है, पूरे महीने, पूरे साल। जबकि वो पूरे महीने सामान्य नहीं होतीं। उन्हें अपने सारे काम करने होते हैं, घर संभालना, ऑफिस का काम करना, कॉलेज अटेंड करना.. सबकुछ। और इससे बड़ी बात महीने के उन 4 दिनों में उस दर्द को झेलते-संभालते हुए किसी को उसका पता न चलने देना, सामान्य बनी रहना। 80% महिलाओं को पीरियड्स के दौरान बहुत दर्द होता है। कुछ को पहले दिन इतना असहनीय दर्द होता है कि वो उठने-बैठने लायक नहीं रहतीं। पर मामला यही है कि किसी को पता नहीं चलना चाहिए। कहीं दाग नहीं लगना चाहिए।

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ऑफिस में बैठी लड़की दर्द से परेशान रहती है। कई बार गर्म चाय-कॉफी पीती है। उससे उसका सहकर्मी पूछता है कि क्या हो गया पर वो खुलकर ये नहीं कह पाती कि पीरियड्स के दर्द से परेशान है। कहती है कि सिर दर्द या पेट दर्द हो रहा है या फिर कुछ खास नहीं यार बस ऐसे ही, थोड़ा फीवर है। उसे पता होता है कि वो झूठ बोल रही है, उसका सहकर्मी भी बेवकूफ़ नहीं होता, इतना समझ ही जाता है पर बचपन से नसीहतों की घुट्टी ही यही पिलाई गई है कि किसी को बताया नहीं जाता है, इसलिए वो खुलकर बात करने से झिझकती है।

ऐसे में सहकर्मियों की एक जमात ऐसी भी होती है जो उस लड़की के हाव-भाव से पहचानने की कोशिश करती है कि उसे पीरियड्स है या नहीं। ये जानकर उन्हें पता नहीं कौन-सा सुख मिल जाता है.. पर जानने की कोशिश होती है। ये लोग लड़की के खड़े होते ही उसकी पैंट या स्कर्ट पर नज़रें जमा लेते हैं या फिर उसकी चाल में फ़र्क ढूंढने की कोशिश करते हैं।

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परिस्थितियां कई बार बहुत खराब हो जाती हैं। लड़कियां काम तो करना चाहती हैं पर लगातार बैठने की हालत में नहीं होतीं। अगर वो हर महीने छुट्टी लेने लगें तो दुनिया की कई दर्जन कम्पनियां इस आधी आबादी को अपने ऑफिस के रिसेप्शन से ही बाहर का रास्ता दिखा दें। ऐसे में अगर हर महीने menstrual leave policy के तहत छुट्टी मिल जाए तो बहुत मदद हो जाएगी। अब इसपर कई लोगों का प्रश्न यह होगा कि महीने के 4 दिन मुफ्त की छुट्टी मिले? नहीं, महिलाओं और लड़कियों को भी अपने हिस्से की ईमानदारी निभानी होगी। ये स्वाभाविक है कि 4 दिन उतनी बेबस हालत नहीं रहती। और हर महीने इंसान बहुत बीमार जैसा हो ऐसा भी नहीं होता है। ऐसे में कभी-कभी ये छुट्टी ली जा सकती है।

एक और वर्ग तैयार बैठा होगा यह कहने को कि एक तरफ तो बराबरी के झंडे लेकर घूमती हैं ये महिलाएं दूसरी तरफ इन्हें स्पेशल छुट्टी भी चाहिए। तो भैया सारी बराबरी के बावजूद बच्चे तो ये महिलाएं ही पैदा करती हैं न! क्यों? क्योंकि ये नैसर्गिक (प्राकृतिक) प्रक्रिया है। पीरियड्स भी महिलाओं को ही होता है न! क्योंकि ये भी नैसर्गिक प्रक्रिया है। इन सारी प्रक्रियाओँ के बावजूद हम खुद को बराबर मानती ही हैं न! तो पीरियड्स के लिए छुट्टी के नाम पर बराबरी की दावेदारी कैसे कम हो?

जापान में सन् 1947 से menstrual leave policy लागू है। ताइवान, साउथ कोरिया, एशिया और चीन के कुछ भागों में भी यह पॉलिसी है। हमारे ही पड़ोस में काठमांडू भी ये पॉलिसी लेकर आ चुका है। काठमांडू की ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट ‘Sasto Deal’ की कंटेंट मैनेजर कहती हैं कि “आदमी और औरत अलग हैं.. इन दोनों में बराबरी का मतलब ये नहीं कि इन दोनों के रहने और काम करने का तरीका भी एक जैसा ही हो।”

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हिंदुस्तान में यह सब पता नहीं कब संभव हो पाएगा लेकिन वो लड़कियां जो बुखार में क्रेसिन लें या न लें पर पीरियड्स में मेफटॉल स्पास अपने बैग में रखना नहीं भूलतीं, उनसे पूछना कि ज़िंदगी कितनी बेहतर हो जाएगी अगर ऐसा हो पाया। नहीं भी हुआ तो कुछ रुका थोड़ी न रहेगा। वो महिलाएं पहले भी काम कर ही रही थीं, आगे भी करेंगी, उसी कोशिश के साथ कि वो दर्द से मर रही हों पर चेहरे पर मुस्कान बनी रहे। किसी को दर्द की आशंका भी न हो।

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तन्मय भट्ट इस बार प्रियंका चोपड़ा पर बोले, क्वांटिको गर्ल ने ले ली क्लास!

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तन्मय भट्ट इस वक्त इंडिया के जाने-माने कॉमेडियंस में से एक हैं। लोग उनका बेबाक और कई बार बकवास AIB पसंद भी करते हैं और वो बातें talk of the town भी बन जाती हैं। अभी कुछ समय पहले उन्होंने लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर का स्पूफ़ वीडियो बनाया था जिसपर उन्हें खूब आलोचना झेलनी पड़ी। पर वो भी क्या करें बेचारे, कॉमेडियन हैं, वो भी बकैती वाले तो रिस्क तो लेना ही पड़ेगा न!

सचिन और लता के बाद इस बार बारी थी प्रियंका चोपड़ा की। प्रियंका क्वांटिको में अपने जलवे बिखेर रही हैं। खूब नाम कमा रही हैं पर अभी उनके जिस हूनर की बात की जा रही है और काफी हद तक मज़ाक उड़ाया जा रहा है वो है उनका अमेरिकन एक्सेंट। टीवी शो में वो अमेरिकी एक्सेंट को पूरी तरह फॉलो कर रही हैं। हालांकि उनका एक्सेंट बनावटी नहीं है, उन्होंने अपने स्कूली दिनों का काफी वक्त अमेरिका में गुज़ारा है। उनकी शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई है पर क्या करें, लोगों का काम है कहना।

अब जब सभी लोग इसपर बात कर रहे हैं तो तन्मय भट्ट कैसे चुप रह जाते! उनका बोलना तो बनता है न बेटा! खाना कैसे पचेगा? तो भाई साहब ने मुंह खोल दिया, अरे मतलब ट्वीट कर दिया। उनके एक्सेंट का मज़ाक उड़ाते हुए।

पर इससे पहले कि क्वांटिको गर्ल कुछ कहतीं, उनके फैंस ने ही तन्मय की क्लास ले ली।

पर अभी प्रियंका का जवाब बाकी था दोस्त.. देखो क्या कहा क्वांटिको गर्ल ने।

तन्मय भैया इसका जवाब नहीं दे पाए। और उसके बाद उनकी ट्विटर पर जो ली गई वो तो भैया पूछो मत!

मतलब पहली बार तन्मय इतने परेशान हो गए कि उन्होंने कह दिया – क्यों मुझ पर चढ़ रहे हो, वो कॉम्प्लीमेंट था।

अब ये तो हमें भी पता है तन्मय जी कि वो कॉम्प्लीमेंट नहीं था। आप का अपना ख़ुराफ़ाती दिमाग था। जब निशाना गलत लगा और तीर घूमकर आपकी ओर आ गया तो आप ने बात भी घूमा दी।

ख़ैर, ये काम पहले ही हो जाना था। प्रियंका ने बड़े हल्के अंदाज़ में वो कर दिया। तो कैसा फील कर कर रहे हैं आप तन्मय भैया! 😉 😛

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उत्तराखंड सरकार संजीवनी बूटी ढूंढने के लिए अफ़रात पैसे खर्च कर रही है

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संजीवनी बूटी का नाम तो सुना ही होगा आप ने। अरे ऐसे कैसे नहीं सुना होगा! जेनरेशन चाहें कोई भी हो रामायण सबने देखी है। लक्ष्मण को शक्ति बाण लग जाता है, वो मरने वाली हालत में आ जाते हैं। दूनिया में वही एक बूटी थी जो लक्ष्मण की जान बचा सकती है। हनुमान जी गए, खूब ढूंढे.. नहीं मिली तो पूरा पहाड़ ही उखाड़ लाए।

अब समस्या तो यही है भैया कि बूटी तब भी नहीं मिली, अब कहां से मिलेगी बताओ! लेकिन कोई सुने तब न। अब उत्तराखंड सरकार इसको ढूंढने के पीछे पड़ गई है। हरीश रावत जी की सीट बच गई तो सोचा थोड़ा पुण्य ही कमा लें। इस काम में सरकारी पैसे झोंक दिए। वो भी 10-20 लाख नहीं, 250 मिलियन रुपये.. कुछ समझे? मतलब 25 करोड़ रुपये बेटे।

Harish

हालांकि हिमालय पर ऐसे बहुत सारे पौधे हैं जिनकी औषधीय विशेषताएं हैं पर वैज्ञानिक सदियों से संजीवनी बूटी ढूंढ रहे हैं। उसी राज्य के मंत्री हैं सुरेंद्र सिंह नेगी, उन्होंने कहा है कि – हमें ये कोशिश करनी ही है और ये बेकार नहीं जाएगी। हम संजीवनी ढूंढ निकालेंगे। वैज्ञानिक इसपर अगस्त से काम करना शुरू कर देंगे। उत्तराखंड सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार से भी पैसे मांगे पर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। अब जिस चीज़ के होने की प्रामाणिकता है ही नहीं, उसके लिए कोई क्यों पैसे फूंके भला!

वैसे एक फ़र्क देखने को मिला है. वो ये कि इंडिया का 5000 साल पुराना आयुर्वेद अब दोबारा काम में आ रहा है। ‘आयुष’ के बारे में तो आप ने सुना ही होगा।

हरीश जी सोच रहे होंगे कि पता नहीं कुर्सी कबतक रहेगी, तो संजीवनी ढूंढ कर पैसे ही कमा लें अपने खाते में। ख़ैर, हम कुछ न कहेंगे भैया, बड़े लोगों का खेल है ये।

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लोगों से क्या-क्या सुनते हैं नए-नवेले पत्रकार?

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इंटरमीडिएट के बाद आप ने क्या किया? लोग या तो डॉक्टर बनने लगते हैं या इंजीनियर। कॉमर्स से हैं तो सीए, या बैंक में पीओ की तैयारी करने लगते हैं। ख़ैर, कॉमर्स वालों का इतना तो पक्का ही है कि बैंक की तैयारी करें या सीए की, बी. कॉम. कर लेंगे। साइंस वाले मेडिकल या इंजीनियरिंग फील्ड में घुसने की कोशिश करते हैं। इंजीनियरिंग वाले लगभग सभी लोग बी. टेक. कर ही लेते हैं, भले बाद में एसएससी की तैयारी करनी पड़े। मेडिकल वालों के इंट्री आसान नहीं होती, कुछ बी. फार्मा कर लेते हैं और कुछ बी. एससी। एक जमात ऐसे भी होती है जो पत्रकारिता करती है। ये जमात किसी एक स्ट्रीम से नहीं होती। साइंस, आर्ट्स, कॉमर्स सभी स्ट्रीम के लोग इसमें घुसे चले आते हैं।

जिसको लगता है कि वो अच्छा बोलता है या लिखता है वो चला आता है। कई लोग यहां नोट छापने भी आते हैं, ऐसे लोग जब 4-5 साल खपा लेते हैं और उनके पास कहीं और जाने का विकल्प नहीं होता है, और नोट छापने के नाम पर महीने में 20 हज़ार भी बमुश्किल मिलते हैं तब सिमर और रोली और ‘कुमकुम भाग्य’ की प्रज्ञा से भी बुरा फील करते हैं। कई होनहारों को लगता है कि बड़ा ग्लैमर है यहां, आते ही उन्हें कैमरे के सामने खड़ा कर माइक पकड़ा दिया जाएगा। ऐसे लोगों की जब इंजेस्ट करे-करते आधी ज़िंदगी बीत जाती है तो लगता है कि गलत फंसे यार!

इस पर से बची-खुची कसर लोग पूरी कर देते हैं। क्या नहीं कह देते हैं वो ये सुनकर कि आप पत्रकार हैं। ज़ख़्म पर पूरा टाटा सॉल्ट डाल देते हैं। उनके लिए पत्रकार मतलब टीवी.. बस। अब उनको ये लगता है कि उन्होंने रवीश कुमार, पुण्य प्रसुन वाजपेयी, निधि कुलपति, सुधीर चौधरी, दीपक चौरसिया को देखा है.. तो उन्हें पता है कि पत्रकारिता किस बला का नाम है। पर उन्होंने तुम्हें तो नहीं देखा, कैसे पत्रकार हो तुम? देखिए क्या कहते हैं लोग जब वो सुनते हैं कि आप पत्रकार हैं।

इन्हें देखिए.. ऐसे ही लोग गलत रास्ता दिखाकर करियर बर्बाद कर देते हैं। इसने ही कहा था बहुत स्कोप है। इसे ढूंढ कर पीटो रे..

glamour

 

ये लोग बैठे होते हैं आपको सर्टिफिकेट बांटने के लिए। आप अपनी जान दे दो, ये आपको निठल्ला ही समझेंगे। पत्रकार मतलब कुछ भी नहीं। सिर्फ़ बहस करते हैं पत्रकार..

Chachaji

 

ये मालगुडी डेज़ के ज़माने वाले चाचाजी हैं। इन्हें भी लगता है हम किसी काम के नहीं हैं। वैसे ये हमारी हालत कुछ हद तक समझते हैं, इ्न्हें पता होता है कि हमारा हाल बेहाल है।

Chacha

 

कैसे पत्रकार हो भाई? टीवी पर नहीं आते हो। इनको वही पत्रकार समझ में आते हैं जो स्क्रीन पर आते हैं। बाकी तो गाजर-मूली हैं। 

bua ji

 

अबे तुम भी तो एक छत के नीचे एक ही कुर्सी पर बैठे-बैठे अपनी ज़िंदगी के 40 साल बिता दिए। हमने कुछ कहा क्या?

Uncleji

 

अब इनको भी बताओ किस चैनल में हो। 4 नाम से ज्यादा इन्हें पता नहीं है, और इन्हें नहीं पता है तो आप फिसड्डी ही हैं।

Bhabhi ji

अब बताते रहो कि पत्रकार हो तो किस चैनल में हो और टीवी पर कब आओगे।

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आनंदीबेन आईं फेसबुक पर, कहा –अब रिटायर होने दो!

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पता तो आपको चल ही गया होगा फिर भी हम दोहराते हैं। आनंदीबेन ने बता दिया कि वो इस्तीफा देना चाहती हैं। चाहती तो वो ऐसा पहले से थीं पर उनकी कोई सुन नहीं रहा था। दो महीने पहले सिफारिश की थी, अब उसी सिफारिश पर ज़ोर देने के लिए आनंदीबेन ने फेसबुक का सहारा लिया।

हां, शायद यही सोच रही होंगी कि खुद ही सबको बता देंगी तो बात आगे बढ़ जाएगी। इश्क के अलावा अगर इस्तीफे की ख़बर भी एक बार फैल जाती है तो उसे रोक पाना मुश्किल हो जाता है। यही सोचकर आनंदीबेन ने फेसबुक पर पोस्ट कर दिया। उन्होंने सबको याद दिलाया कि – 2 साल से पार्टी में परंपरा है कि 75 वर्ष से ऊपर के सदस्य बड़े पदों से खुद मुक्त हो रहे हैं (कईयों को तो मुक्त कर ही दिया गया, कोप भवन में बैठे हैं 😉 )। आगे उन्होंने अपनी इच्छा ज़ाहिर करते हुए कहा – इसी परंपरा को मैं आगे बढ़ा रही हूं (और लोग मुझे बढ़ाने नहीं दे रहे 😛 )। मैं इस नवम्बर में 75 साल की होने जा रही हूं (आपसे भी बूढ़े लोग पड़े हैं बेन 😉 )। अगले साल वाइब्रेंट गुजरात जैसे बड़े कार्यक्रमों के लिए नए सीएम को पर्याप्त समय मिलना चाहिए (मैडम ने बता दिया कि गुजरात की भलाई इसी में है कि वो अभी इस्तीफा दें)।

तो ये हैं आनंदीबेन। फेसबुक पर गुजराती में लिखकर अपनी इच्छा जताई कि जाने दो भैया, अब रिटायर होने दो। बहुत हुई राजनीति। अब देखते हैं कि अगला मुख्यमंत्री कौन बनता है। नितिन पटेल और अमित शाह का नाम आगे आ रहा है.. मतलब ख़बर उड़ रही है। गुजराती में लिखा है मैडम ने, पढ़ना हो तो पढ़ लो।

आनंदीबेन को 75 वर्ष पर इस्तीफा चाहिए। एक सर जी हैं नारायणदत्त तिवारी, कांग्रेस के हैं.. 90 साल के हो गए पर सक्रीयता देखो! मुरली मनोहर जोशी जी को कैसे भूल गए भाई? 82 वर्ष के हैं साहब, पता है कि दिग्गज नेता हैं। पर 82 कुछ होता है जनाब! अब भी कानपुर के सांसद बने हुए हैं। अरे, सबसे बड़े साहब का तो नाम ही भूल गई। अब देखो उनका नाम लास्ट में डाला कहीं इसलिए भी नाराज़ न हो जाएं। अपने आडवाणी जी 88 वर्ष के हो गए हैं। पर प्रधानमंत्री न बन सके इसलिए अभी तक मुंह फुलाए हैं। जब देखो कोप भवन में चले जाते थे, अब तो शांत ही हो गए एकदम से।

एक आनंदीबेन हैं जो 75 वर्ष पूरे होने पर इस्तीफा दिए जा रही हैं
एक आडवाणी जी हैं, 80 पूरे करने के बाद कोप भवन में चले जाते थे।।

– नरेंद्र मोदी (सोच ही रहे होंगे)

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इस मराठी कपल ने 295 फीट ऊपर, हवा में लटक कर की शादी

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इंडिया में सबसे ज़रूरी चीज़ होती है शादी। अब ये क्यों ज़रूरी है भैया, तो जवाब ये है कि यहां आपके पास 2 दर्जन रिश्तेदार होते हैं। वो रिश्तेदार जो अपने से ज्यादा आपके काम से मतलब रखते हैं। अब शादी एक ही बार होती है तो स्पेशल होनी चाहिए। स्पेशल इसलिए भी होनी चाहिए क्योंकि उससे आपके स्टैंडर्ड की मापतोल होती है।

हर इंसान चाहता है कि उसकी शादी बहुत स्पेशल हो। इस स्पेशल के चक्कर में कई बार सब तमाशे जैसा भी लगने लगता है। ख़ैर, अब बात को बिना घुमाए सीधे बात पर आते हैं। एक मराठी कपल है। ट्रेकिंग के दौरान मिले थे, वहीं प्यार हो गया और ये सिलसिला शादी तक बढ़ा। अब शादी करनी है पर वो स्पेशल वाली होनी चाहिए। शादी स्पेशल कैसे हो? आजकल लोग इतने नए-नए एक्सपेरिमेंट्स करते हैं शादी के साथ कि कुछ नया करने को बचा ही नहीं।

तो इन लोगों ने अपनी शादी को एडवेंचरस बनाने की सोची। मिले थे ट्रेकिंग पर, शादी के फेरे लिए हवा में। जी हां, हवा में लटकते हुए वरमाला डाली दोनों ने। वो भी 295 फीट की ऊंचाई पर। अपनी ज़िंदगी के सबसे हसीन पलों में सांसें अटकाए हुए नए एक्सपेरिमेंट का आनंद लिया। ज्यादा क्या कहें? आप खुद ही देख लीजिए।

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iPhone 6 ब्लास्ट हुआ और इन भाईसाहब की जल गई!

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ये ससुरी iPhone है ही ऐसी चीज़। सबकी जलाती है, सबको सुलगाती है। अब भैया iPhone किसे नहीं पसंद! पर 60 हज़ार में फोन आइंगा तो सोचना पड़िंगा न! अब इतना सोच-सोच के लेने के बाद इंसान कहां कुछ ले पाता है। तो इसलिए हमारा समाज 2 तरह के लोगों में विभाजित है। पहले बचपन में पढ़े होंगे – ‘haves’ और ‘have-nots’ .. वैसे ही – iPhone वाले और iPhone-less वाले। मतलब एक वो बड़े लोग जिनके पास iPhone है और दूसरे वो लोग जिनके पास जॉब, सैलरी, इनक्रिमेंट, बोनस सब है.. पर iPhone न है।

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कई लोग जिनके पास ये luxury नहीं है वो ये भी कहते हैं कि ले तो सकते हैं पर पसंद ही नहीं है। अब उनको एक और बहाना मिल गया iPhone न लेने का। अब भैया बात ऐसी है कि फोन बढ़िया वाला लेंगे, एक फोन लेने में अपनी पूरी सैलरी फूंक देंगे तो इतना तो चाहेंगे कि फोन में एक्स्ट्रा क्वालिटीज़ हों। ज्यादा बढ़िया इंटरनेट स्पीड हो, ज्यादा दिन चले, हैंग न हो, सेफ्टी हो। पर अपना आइफोनवा तो फेल हो गया जी!

मुद्दे पर आते हैं.. ऑस्ट्रेलिया के एक महानुभाव हैं – Gareth Clear, पेशे से मैनेजमेंट कंसल्टेंट हैं। बाइक पर जा रहे थे कहीं, फोन पॉकेट में था। अचानक ब्लास्ट हो गया.. इनके शॉर्ट्स तो जले ही, चमड़ी भी जल गई। सर जी बाइक पर थे जब फोन से आग की लपटें निकलने लगीं तो बाइक से गिरे और इनकी दायीं जांघ जल गई।

उनका वो आईफोन पूरी तरह डैमेज हो चुका था, उससे मेटल बेंडिंग और लीथियम लीक हो रहा था। अब आईफोन के साथ कोई दुर्घटना हुई है भाई.. तमाशा थोड़ी है! एप्पल के लोगों ने कहा कि इस पर तहकीकात की जाएगी। ख़ैर, क्लीयर जी ने लोगों को जागरुक करने के लिए एक जनहित में जारी ट्वीट भी किया है।

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बैंगलूरू में ‘जवान’पर हुआ हमला क्योंकि वो North Indian था!

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हो रहा भारत निर्माण…” के 2 सत्रों के एपिसोड के बाद तीसरा एपिसोड आया है नये गीत का – “मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है” पर सारा बदलाव सिर्फ़ विज्ञापनों में ही है। जवानों का नाम लेते ही गर्व से छाती चौड़ी हो जाती है आपलोगों की! देश पर गर्व करते हैं आप, यहां के जवानों पर भी गर्व करते ही हैं। सैनिकों की एक-एक फेसबुक फोटो पर कई हज़ार likes ठोकते हैं आप।

पर सच्चाई यही है कि जवान तभी महान बनता है जब वो आपके लिए अपनी जान दे दे। शहीद होने के बाद ही आप उसे बहादुर मानते हैं उससे पहले नहीं। जब तक वो बॉर्डर पर रहता है, -50 डिग्री तापमान में जमा रहता है आप अपने बेडरुम में बैठकर उसे शाबाशी देते रहते हैं। जब वो आपके आस-पास होता है तो थ्योरी बदल जाती है। आपको पता है कि उन्हें आकस्मात छुट्टी लेनी पड़ती है और रेलवे ट्रेन में सीट नहीं मिलती है। वो खुद से कहीं एडजस्ट कर के बैठ जाए तो ठीक पर आप में से कितने लोगों ने छुट्टी पर वापस अपने घर जाते जवान को अपनी सीट दी है? नहीं देते न? और वो सरहद पर जाकर अपनी जान दे दे। उसे सुपरमैन समझते हैं आप.. लगता है कि जवान वहां (घटनास्थल पर) मौजूद था तो आप सुरक्षित क्यों नहीं थे? आप कई बार ये भूलने लगते हैं कि वो भी इंसान ही हैं। और नेतागण उन्हें तरबूज समझते हैं। कटते रहें.. मरते रहें.. क्या फ़र्क पड़ता है? उनकी शहादत को सम्मान देने ही तो ये बैठे हैं 10 जनपथ में।

हाल ही की घटना है। बैंगलूरू, हां वही आई टी बेस्ड शहर, उसी मॉडर्न शहर ने अपना खोखलापन दिखाया है। एक जवान वहां की ट्रैफिक में फंसा था। उसकी SUV कार पर हरियाणा का नम्बर प्लेट लगा था, वो जवान आर्मी में मेजर है। बगल में खड़े एक ऑटो ड्राइवर ने उसकी गाड़ी का नम्बर प्लेट देखा और उसे भला-बुरा कहने लगा इसलिए क्योंकि ये माना जाता है कि नॉर्थ इंडियंस को शहर की सड़कों पर ड्राइव करना नहीं आता। आपलोग गाते रहें कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक आपका भारत है पर उत्तर-पूर्वी लोग दिल्ली में सुरक्षित नहीं हैं.. उत्तर भारतीयों का दक्षिण में बुरा हाल है, और मराठियों को यूपी-बिहार वाले नहीं चाहिए। ख़ैर, जवान ने उसे मना किया कि वो ऐसा न करे। जब वो नहीं माना तो मेजर ने मोबाइल में उसकी फोटो खींच ली ताकि वो पुलिस में शिकायत दर्ज करा सके।

इस पर वो ड्राइवर उठा और चार लोगों के साथ मिलकर मेजर की गाड़ी तोड़ने-फोड़ने लगा। मेजर घबरा गया, लोकल भाषा की समझ न होने के कारण वो समझ नहीं पाया कि अचानक ऐसा क्यों हो रहा है। आते-जाते लोगों में से भी कईयों ने बिना जाने-समझे उस गैंग का साथ दिया और तोड़-फोड़ मचाने लगे। बाद में वे मेजर को गाड़ी से खींच कर बाहर लाए और पीटने लगे। कभी गाड़ी चलाया होगा या कोई मैकेनिकल काम किया होगा तो रिंच देखा ही होगा। रिंच से मेजर पर हमला किया गया।

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मेजर बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया, मदद के लिए चिल्ला रहा था और करीब 40 लोग मूक दर्शक बने बैठे थे। इंतज़ार कर रहे थे कि पुलिस आएगी तो मामला सुलझेगा। हम भी तो यही करते हैं.. जबतक मामला हमारे घर का न हो, आप में से कितने लोग आगे बढ़ते हैं? जागरुक नागरिक कहलाने वाली आप जैसी जनता सड़कों पर आंख-कान बंद कर के चलती है।मेजर की गाड़ी के ठीक पीछे ही एक टेक्निकल इंजीनियर था – मुरली कार्तिक। उसने देखा कि मेजर बिल्कुल बेगुनाह है, उसे तो लोकल भाषा की भी समझ नहीं है और कोई मदद को नहीं आ रहा है। वह आगे बढ़ा और हमलावरों को रोकने की कोशिश की। वो समझाने लगा कि इतना मत मारो नहीं तो मर जाएगा बेचारा। किसी भी तरह सब शांत हुए तबतक आरोपी फरार हो चुका था। कार्तिक मेजर को लेकर तुरंत हॉस्पिटल पहुंचा। अभी मेजर हॉस्पिटल में हैं और कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं। कार्तिक कहते हैं कि काश! उन 40 खड़े लोगों ने हिम्मत दिखाई होती तो इतना सबकुछ न हुआ होता।

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मेजर ने अपने दोस्तों को सूचना दी जो वहां पहुंच चुके हैं। शिकायत दर्ज की जा चुकी है। पर बात वहीं आकर फंसी है कि हम सबकुछ ठीक करने के लिए हर बार पुलिस का इंतज़ार करते हैं। हमें मूक दर्शक बने रहना ही पसंद है। हम अपने काम से मतलब रखने वाले लोग हैं।

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